टीवी पर ओस के मोती बनते किसान के आंसू

आज की मीडिया बारूद के साथ चिंगारी भी लेकर चलती है और उस चिंगारी से जो लपटें उठती है उसे टीआरपी भी बटोरती है, यह वही मीडिया है जो मरकसो में रह रहे हैं मुसलमानों को आतंकवादी और सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती को हत्यारा बताती है, पिछले 100 दिनों से किसान आंदोलन चल रहे हैं 150 से ज्यादा किसानों की जान जा चुकी है लेकिन ना सरकार, ना मीडिया ना ही विपक्ष किसी ने इस मुद्दे को इस तरह से नहीं उठाया जिससे कि किसानों का आंदोलन खत्म हो सके, नई दिल्ली से महज 30 किलोमीटर दूर सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसान सर्द मौसम में बिना आशियाने के रह रहे हैं लेकिन सरकार है जो सुनने का नाम नहीं ले रही है | आखिर नए कृषि कानून में ऐसा क्या है जिससे किसान भयभीत है
नए कृषि कानून के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं :-
1. एपीएमसी (APMC) के समांतर जो मंडी प्रणाली बनेगी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य तए किए बिना अनाज खरीदेगी
2. अगर किसान और कॉर्पोरेट हाउस के बीच कोई विवाद होता है तो वे कोर्ट भी नहीं जा सकते हैं
3. कॉर्पोरेट हाउस तय करेगी किस फसल को लगाना है और किस फसल के दाम कितने होंगे
4.किसान से अनाज खरीदने के लिए कोई रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत नहीं होगी इससे धोखाधड़ी बढ़ेगा

एक उदाहरण से समझीए जैसे मार्केट में सबसे पहले 4G की सस्ती सर्विस जीयो ने लाई, शुरुआत में जिओ ने 6 महीने तक फ्री सर्विस दी उसके बाद ₹300 फिर ₹400 फिर ₹500 आज जिओ की सर्विस चार्ज है ₹600 प्रति 3 महीने की इससे मार्केट में मोनोपोली बढ़ी, वैसे ही कॉर्पोरेट हाउस शुरुआत में छूट देगी फिर अपने हिसाब से दाम तय करेगी इससे किसान सिर्फ एक मजदूर बनकर रह जाएंगे..
शुरुआत में सरकार इसे नजरअंदाज कर देती है लेकिन जब आंदोलन को आम जनों का समर्थन मिलने लगता है तो सरकार बातचीत के द्वारा समाधान निकालने की सिफारिश करती है सवाल यह है कि अगर सरकार को बातचीत ही करनी थी तो इतनी जल्दी में कानून को क्यों लाया गया वह भी अध्यादेश के जरिए जब महज 3 महीने रहते हैं संसद के सत्र शुरुआत होने में संसद के शुरुआत होते ही सरकार बिना किसी चर्चा के इसे महज 15 मिनट में पास करवा लेती है राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद भी स्पीकर के द्वारा ध्वनिमत से विधेयक को पारित करवाया जाता है, संसद के नियम के तहत अगर एक भी सदस्य किसी विधेयक पर वोटिंग की मांग करता है तो पेपर के जरिये वोटिंग होना अनिवार्य है.इस तरह से बिल पास पहले भी हुए हैं 2013 में कांग्रेस सरकार में तेलंगाना को राज्य का दर्जा देने वाले बिल को पास करवाने के दौरान लाइट बंद कर दी गई थी

मेरा सवाल यह है कि आखिर 2014 में जनता बीजेपी को सत्ता इसलिए सौपी की जो गलती कांग्रेस सरकार ने कि वह बीजेपी ना करें ना कि आप उस गलती को करे और पिछली सरकारों को दोष दें ऐसे तो कभी अंत ही नहीं हो सकेगा..

नए कृषि कानून आने से कॉरपोरेट सेक्टर को फायदा कैसे..

नए कृषि कानून आने के बाद कॉरपोरेट हाउस अपने हिसाब से दाम तय करेगी और ज्यादा से ज्यादा अनाजो (धान गेहूं चना और अरहर इत्यादि) को भंडारण कर मार्केट में दाम को बढ़ा सकती है फिर मार्केट में दाम बढ़ने पर उसी अनाज को 5 से 10 गुना ज्यादा कीमतों में बेचेगी.. आजादी के बाद से किसानो की आय 30 गुना बढ़ी है वहीं विधायक सांसद की आय 280 गुना बढ़ी है , 2014 में किसी सेक्टर से जुड़े कारखानों का राजस्व में 25 लाख करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई वहीं 2017 में बढ़कर 44 लाख करोड़ की, 2014 में कृषि से जुड़ी उपकरणों के कारखानों का राजस्व 40 हजार करोड़ वहीं 2017 में 62 हजार करोड हो गया 2023 तक इसे बढ़ाकर 93 हजार करोड़ करने का लक्ष्य है ध्यान देने वाली बात है कि किसानों की आय पिछले 20 सालों में सिर्फ 30 पैसे बढ़ी है, लॉकडाउन के समय जब सभी सेक्टर नेगेटिव में थे तब कृषि सेक्टर में अच्छा वृद्धि देखने को मिला, अप्रैल से सितंबर तक 53,626 करोड़ के खाद्य सामग्री का निर्यात भारत ने किया जो सभी सेक्टर के निर्यात से सबसे ज्यादा था, इससे सरकार को मुनाफा तो बढ़ा लेकिन किसानों की आय नहीं बढ़ी मार्केट का नियम तो यही कहता जब डिमांड बढ़ती है तो उत्पादन बढ़ता है जब उत्पादन बढ़ता है तो उत्पादन करने वाले की आय भी बढ़ती है लेकिन ऐसा सभी सेक्टर में तो लगभग देखने को मिलता है लेकिन कृषि सेक्टर में क्यों नहीं


भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है भारत के जीडीपी में 17% हिस्सा कृषि क्षेत्र का है, अगर कृषि क्षेत्र के राजस्व को जीडीपी से निकाल दिया जाए तो अर्थव्यवस्था लड़खरा कर गीर जाएगी जैसे भुकंप में 10 मंजिलें मकान गिरती है.. लॉकडाउन के दौरान भारत की जीडीपी – 23.9% थी सभी सेक्टर नेगेटिव में थे लेकिन कृषि क्षेत्र की जीडीपी +3.4% थी, भारत के 70% लोग कृषि पर निर्भर है कभी हमारे पास खाने को नहीं था वर्ष 1996ई. में भारत ने अमेरिका से 100 लाख टन अनाज खरीदा था आज हम अमेरिका को बेचते हैं, दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा खाद्य सामग्री का उत्पादन भारत करता है, लेकिन आज भी हमारे देश के 14% जनसंख्या कुपोषण की शिकार है, दुनिया में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या भारत में ही करते हैं इसकी सबसे बड़ी वजहे हैं अनाज का उचित मूल्य ना मिलना, बैंकों का कर्ज, मानसून नहीं आए तो सुखार पड़ना,प्रकृति आपदा (ओलावृष्टि, बाढ़ अधिक बारिश) या सरकारी सुविधा का सही लाभ नहीं मिलना..

मै एक उदाहरण से आपको समझाता हूं बिहार के भागलपुर जिले के फुलवारी गांव में एक किसान (रामबाबू यादव) ने ₹50000 कर्ज लेकर धान के बीज खरीदा फिर बीज को तैयार होने तक रामबाबू को खाद्य और मजदूरी में ₹10000 खर्च हो गए जब तैयार बीज को रोपने का समय आया तो मौसम ने साथ नहीं दिया तो फिर बोरिंग के लिए 10 हजार रुपए खर्च हुए, लेकिन कुछ दिन के भीतर ही बाढ़ आ गई फिर सारी फसलें बर्बाद हो गई, ना उन्हें किसान सम्मान निधि ना किसान फसल बीमा योजना का लाभ मिला, बैंकों का कर्ज न चुकाने की वजह से अंततः उन्होंने आत्महत्या कर ली.. आखिर रामबाबू यादव की मौत का जिम्मेदार कौन है सरकार, प्रकृति, मीडिया या खुद रामबाबू जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी खेत में बिताए.. जिससे हम सभी को भोजन मिलता रहा, ऐसे हजारों रामबाबू है जो हर रोज कभी बैंक लोन तो कभी फसल बीमा योजना तो कभी मानसून का मार झेलते हैं, “जय जवान जय किसान” यह नारे लाल बहादुर शास्त्री ने दिया थी जब देश भूखमरी के भाड़ी संकट से गुजर रहा था….
कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारत में हर रोज 16 किसान आत्महत्या करते हैं, पिछले 5 सालों में किसानों की आत्महत्या बढ़ी है, 2016 में 6270, 2017 में 5955, 2018 में 5763, 2019 में 5957 (Fg.1) किसानों ने आत्महत्या की, यह डेटा उन किसानों की है जो रजिस्टर थे समूचे देश में अगर 1 लाख किसानों में 14 किसान आत्महत्या करते हैं तो महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 21 का हो जाता है और विदर्भ में 26 का,भारत में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या महाराष्ट्र में करते है जिसका राजस्व में देश में सबसे ज्यादा है..

Farmers suicide data

टीवी मीडिया की भूमिका

जैसा कि मुस्लिमों के मरकस का मामला हो या सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का केस, किसानों को खालिस्तानी और आंतकवादी बताना|सुशांत केस में रिया चक्रवर्ती को दोषी ठहराना वो भी बिना किसी शाक्ष्य के, जो बाद में एम्स के रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की थी कुछ चुनिंदा पत्रकारों ने रिया चक्रवर्ती को हत्यारिन, काला जादूगरणी, खूनी ना जाने कितने फूहड़ शब्दों का जीक्र किया, लगता है इन पत्रकारों ने मीडिया इथिक्स की किताबें नहीं पढ़ी है, लॉकडाउन के दौरान मरकस के नाम पर किसी एक जाति को आतंकवादी या कोरोना के बढ़ते मामलों का दोषी ठहराना कितना वाजिब था हद तो तब हो गई जब एक न्यूज़ चैनल मरकज का संबंध अलकायदा और आईएसआईएस से जोड़ दिया सवाल यह है कि अगर ये अलकायदा से संबंध रखते थे तो इन्हें भारत में आने कि अनुमति कैसे मिली.. लेकिन सच्चाई किसी से छुपती नहीं है जो कि मुंबई हाई कोर्ट का फैसला आने से साफ हो गया कि यह सब सरकार की नाकामियों को छुपाने की एक सोची समझी रणनीति थी मुंबई हाई कोर्ट का फैसलाफैसला “पीठ ने कहा कि दिल्ली की मरकज में शामिल होने वाले विदेशियों के खिलाफ बड़े स्तर पर दुष्प्रचार किया गया। कोर्ट ने कहा कि जब भी कोई महामारी या आपदा आती है तो सरकार किसी को बलि का बकरा बनाने के लिए ढूंढती है। परिस्थितियों को देखते हुए ऐसे में संभावना है कि इन विदेशी नागरिकों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया है।”https://www.amarujala.com/india-news/tablighi-jamaat-bombay-high-court-quashes-firs-filed-against-several-persons-including-foreigners
अगर भारत में मीडिया की स्वतंत्रता के बारे में बात करूं तो 2010 में वर्ल्ड मीडिया फ्रीडम रैंक के हिसाब से 122वां था वहीं 2020 में 142 वां रैंक है, पिछले पांच सालों (2014-2019) में 40 पत्रकारों की हत्या हुई जिनमें 21 की हत्या शाक्ष्य जुटाने, नेताओं के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से हुई (Fg.2) और 200 पत्रकारों पर गंभीर हमला हुए पत्रकारों पर देशद्रोह और राजद्रोह लगाए गए, वही पिछले 5 सालों में पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं, 65 मामलों का अध्ययन करने पे पता चला एफआईआर सिर्फ 25 में हुई उनमें भी शून्य सजा दर (Zero conviction rate) है अब तक किसी को दोषी नहीं पाया गया |

Journalist killed for their Professional

“टीवी पर ओस के मोती बनते किसान के आंसू” मैंने क्यों कहा क्योंकि नई दिल्ली से महज 30 किलोमीटर दूर सिंघु बॉर्डर पर बड़े बुजुर्ग महिला किसान कड़कती सर्दी में पिछले 3 महीनों से अपनी मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं,
लेकिन किसी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल ने किसानों के बीच जाकर उनसे उनकी समस्याओं पर बात करने की जरूरत नहीं समझी क्योंकि इससे ना उन्हें टीआरपी मिलती है ना सरकारी लव लवो-लवाज |
आखिर में मैं यही कहना चाहूंगा कि हम सबको अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि जो व्यक्ति एक निर्णय सही लिया उसके सभी निर्णय सही ही होंगे, नए कृषि कानून को क्यों लाई गई है क्या इसकी जरूरत किसान को थी? अगर हां तो क्यों – ना तो क्यों  ?

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