न्यूज़ चैनलों के पास विश्वसनीयता को स्थापित करने का अंतिम मौका.

कोरोना वायरस के दौर में भी समाचार टेलीविजन खुद को ध्रुवीकरण एजेंडे से दूर नहीं रख सका

न्यूज़ टेलीविजन अंततः हिंदू-मुस्लिम मानसिकता से बाहर निकल  ही गया था जिस तरह से न्यूज़ चैनलों में डॉक्टर और बायोमेडिकल शोधार्थियों से बात करने की ऐसी होड़ लग गई थी,मानो जनस्वास्थ्य और विषाणु विज्ञान की नई दुनिया की खोज हो गई हो, कुछ दिनों बाद ही तबलीगी जमात की खबर ब्रेक हुई और टीवी पर वही जाने पहचाने चेहरे और कहानियां वापस आ गई क्रोना जिहाद , तबलीगी पाक सनसनी फैलाने वाली हेडलाइंस और हैशटैग भी लौट आएं, कोरोना के इस दौर में भी इस्लामोफोबिया जिंदा है,पिछले सालों में कथित राष्ट्रवादी मीडिया भारतीय मुसलमानों को हिंसक विश्वास न करने लायक राष्ट्रविरोधी दिखाने में लगा है,कश्मीर में आतंकवाद से लेकर कुछ स्वघोषित मौलानाओं के फतवो तक, हर असंगत कार्रवाई से पूरे समुदाय को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है,कुछ टीवी चैनलों पर तो हर शाम एक ऐसा मुद्दा तलाशा जाता है,जो धार्मिक आधार पर भावनाओं का ज्वार ला सके,इस कथानक में तबलीगी कहानी पूरी तरह से फिट बैठती है, एक छीपा हुआ मौलाना कुर्ता- पायजामा  पहने दाढ़ी वाले युवा, विदेशी संपर्क के साथ देशव्यापी नेटवर्क और कोरोना पाजिटिव की असंगत संख्या.

एक धार्मिक समूह की गंभीर गैर जिम्मेदारी के काम को एक बार फिर से इस्लाम को कानून से ऊपर कट्टरपंथी धर्म के प्रमाण के तौर पर देखा गया,इसमें ना ही इस बात पर जोर दिया गया कि किस तरह से उस ओवैसी जैसे सांसद ने समर्थकों को नमाज के लिए जमा न होने और लॉक डॉन का पालन करने को कहा और यह भी भुला दिया तो मक्का में पवित्र काबा को श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया गया है,भारतीय मुसलमान पर कोरोना कैरियर का ठप्पा लगाया जा रहा है और कुछ लोगों को एक मूर्खता की कीमत देश के बीस करोड़ मुसलमान चुका रहे हैं, किस तरह तबलीगी जमात मामला आने के बाद मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू होगी राजनीति वर्णन करने की कोशिश नहीं की इसके बजाय सरकारी अधिकारी न्यूज़ चैनल और डिजिटल योद्धा यह बताते रहे कि तबलीगी संपर्कों की वजह से कितने लोग कोरोना पाजिटिव आए हैं

असल में तो करोना ईश्वर द्वारा दिया गया वह मौका था जब मिडिया खुद को फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं के चक्र से निकाल सकते थे,वायरस का कोई धर्म नहीं होता,यह मौत और बीमारी का वह हथियार है जो मालाबार हिल और धारावी और वसंत विहार और निजामुद्दीन के प्रति एक जैसी नीति रखता है,भारतीय टीवी मिडिया के लिए 2010 से 2019 का समय खोए हुए दशक के रूप में माना याद किया जाएगा इस दौर में समाचार की जगह शोर और सनसनी ने ले ली अनेक चैनलों ने तो ग्राउंड से समाचार लाने की मेहनती काम के बजाय अपना पूरा बिजनेस मॉडल स्टूडियो के शोरूम में तब्दील कर दिया है विश्वसनीयता और निरंतर नुकसान हो रहा है युवा जनसंख्या तो पहले ही ऑनलाइन साइट्स पर चली गई है,लॉकडाउन के दौड़ में टीवी समाचार देखने वालों की संख्या 250 फ़ीसदी बढ़ी है इसलिए मिडिया के पास ध्रुवीकरण एजेंडे की बजाय तथ्य और सुविचार विश्लेषण पेश करने का अंतिम मौका है.

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s