मन ‘ मोहक  की साफगोई !

सियासत की अदब को साफगोई छवि के साथ  परिभाषित कर समाज के दरपेश इबारत की कहानी कोई और नहीं सिर्फ ‘मनमोहक ‘ दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ही लिखी हैं। जोकि शिक्षा से लेकर सियासत तक एक अविस्मरणीय मिसाल कायम की है। मौजूदा नेताओं को आईना भी दिखाता है। यह कहना ग़लत नहीं होगा।

संसद से सड़क तक अपनी कार्यशैलियों पर उठे सवालों के जवाब बहुत शालीनता से दिया करते थे। शायराना अंदाज़ और बहुत ही मद्धिम आवाज़ और बहुत सौम्यता के साथ , लिहाज़ा ‘मनमोहक’ की उदारता और कोमलता ही है , जोकि उनके निधन पर  सियासी  विरोधियों की आँखें भी ना केवल नम कर गईं बल्कि उनकी उपलब्धियों को सराहा भीं। वो अज़ीम शख्सियत के कायदे आज़म थे ही बल्कि समाजिक चेतनाओं , भावनाओं और संवेदनाओं की मिसाल भी बन गए। जिन्होंने देश की नफरती सियासदानों को अदब की परिभाषा बताई। वहीं दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री के निधन से सियासी गलियारों में उदासीनता छायी हुई है।

यह बात सही है कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री वक्ता तो नहीं थे पर बोलते समय थोड़ा असहज भी महसूस किया करते थे। विरोधियों को जवाब बहुत शालीनता से  दिया करते थे। मनमोहन सिंन ना केवल एक सियासदान थे बल्कि वो तो एक शिक्षक भी थे ,अर्थशास्त्री भी थे। हालांकि इन्होंने सियासत की नफरती ज़मीन में अदब का संदेश दिया , शायद इस दौर में  कोई मनमहोन सिंह की  सियासी विचारधारा की राह पर चलने की कोशिश की पर ऐसा होना भी इसलिए मुश्किल लग रहा है कि देश में धर्म की हिंसक राजनीति हो रही है, इसी राजनीति से नेताओं की दुकानें चलती हैं। पर मनमोहन सिर्फ एक हो सकते हैं। क्या कांग्रेस पार्टी मनमोहन सिंह की राह पर चलेगी ?

मनमोहन सिंह दुनिया से जाते – जाते अदब की मिसाल कायम कर दी , जिनको इतिहास में अदब के जनक के तौर पर बहुत एहतराम के साथ याद किया जाएगा। एक सुखनवर आवाज़ हमेशा के लिए इस दुनिया से फ़ना हो गई। सिर्फ और सिर्फ रह गईं उनकी यादों की कहानी !

लेकिन , अब उनके उपल्बधियों पर भी बातें करनी ज़रूरी हैं नहीं तो नाइंसाफी होगी। मनमोहन सिंह के 5 बड़े फैसले देश के विकास में अहम भूमिका अदा की है। जुलाई 1991 में अर्थव्यवस्था में उदारीकरण, औद्दौगिकी का ख़ात्मा कर दिया। जून 2005 में सूचना का अधिकार। सितंबर 2005 में रोजगार गारंटी योजना ने युवाओं में सरकार के प्रति उम्मीद की आस जगी। मर्च 2006 में अमेरिका से न्यूक्लियर डील हुई। जनवरी 2009 मे आधार स्कीम। अप्रैल 2010 में शिक्षा का  अधिकार। इन योजनाओं ने भारत की धूंधली तस्वीर में पारदर्शिता लाई ।


मौजूदा दौर में देश की सियासत नफरती भवनाओं को उसकाने की लगातार कोशिशें कर रही हैं , मिसाल के तौर पर बहराइच में धार्मिक उनमाद और संभल में। ऐसे में मनमोहन की मनमोहक उदारता देश के राजनेताओं को नफरत की बजाय  अदब  की राह दिखाती है। मौजूदा भारत में नफरती की चाशनी देश नफरत की दिवारें खड़ी कर रही हैं , जोकि हमारे लोकतंत्र को दिमक कर रहा है।  लोकतंत्र से जनता का विश्वास उठ रहा है। क्या देश की सियासत मनमोहन सिंह की राह पर चलेगी या धार्मिक आधार पर ? यकीनन जब सियासत में अदब की बात होगी , मनमोहन सिंह को याद किया जाएगा। अदब के लिए।

~ लेखन : सोफयान शेख

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