डोनाल्ड ट्रंप के ऐतिहासिक जीत ने 132 साल पुराने रिकॉर्ड तोड़े?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने अभूतपूर्व जीत हासिल की है। 1982 में ग्रोवर क्लिवलैंड के बाद ट्रंप दूसरे ऐसे राष्ट्रपति बने हैं जिन्होंने 4 साल के अंतराल के बाद सत्ता में दोबारा वापसी की है। ट्रंप की इस ऐतिहासिक जीत ने चुनाव से पहले राजनीतिक विश्लेषकों के उस दावे को झूठा साबित कर दिया जिसमें डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही थी। 50 राज्यों की 538 सीटों में ट्रंप को 305 इलेक्ट्रोरल वोट मिले, जबकि डेमोक्रेट्स की कमला हैरिस 226 सीटों तक सीमित रह गईं। (मतगणना अभी जारी है)। अमेरिका फ्रांस के बाद दूसरा ऐसा पश्चिमी देश है जहां के चुनाव नतीजों ने सबको चौंका दिया है। जिन 7 स्विंग राज्यों में कमला हैरिस की मजबूत पकड़ बताई जा रही थी, वहां ट्रंप ने क्लीन स्वीप कर लिया है।

बता दें कि स्विंग स्टेट्स ऐसे राज्यों को कहा जाता है जो पारंपरिक रूप से न तो ब्लू (डेमोक्रेटिक) के पक्षधर होते हैं और न ही रेड (रिपब्लिकन) के साथ होते हैं, इसलिए इन्हें पर्पल राज्य भी कहा जाता है। यहां की जनता का मूड कुछ हद तक न्यूट्रल होता है। इन सात राज्यों में पेनसिल्वेनिया, मिशिगन, विस्कॉन्सिन, नेवाडा, जॉर्जिया, एरिजोना और नॉर्थ कैरोलिना शामिल हैं। अमेरिका की आबादी का पांचवां हिस्सा इन राज्यों में रहता है। 93 इलेक्टोरल सीटों के साथ ये राज्य अपनी अहम राजनीतिक भागीदारी रखते हैं।

  1. राष्ट्रवाद का मुद्दा: ट्रंप ने अपनी हर दूसरी चुनावी रैली में राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया। ‘अमेरिका फर्स्ट’ – ‘अमेरिकी फर्स्ट’ की नीति को लेकर ट्रंप हमेशा मुखर रहे। ट्रंप का कहना था कि हम अमेरिकी लोगों के टैक्सपेयर्स का पैसा दूसरे देशों में चल रहे युद्धों पर क्यों खर्च करें। हमें वह पैसा अपनी अर्थव्यवस्था में खर्च करना चाहिए।
  2. अवैध प्रवासियों का मुद्दा: अमेरिकी चुनाव में हर बार अवैध प्रवासी एक बड़ा मुद्दा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1.5 करोड़ लोग अवैध रूप से अमेरिका में रहते हैं। इसी मुद्दे को लेकर ट्रंप ने बाइडेन सरकार पर जमकर निशाना साधा था। पिछले ट्रंप कार्यकाल में अवैध वीजा को लेकर कई कड़े कदम उठाए गए थे।
  3. धर्म का मुद्दा: भारत की तरह, अमेरिकी चुनाव में भी धर्म के ज़रिए वोटरों को साधने की कोशिश की गई। नॉर्थ कैरोलिना में चुनावी सभा के दौरान ट्रंप ने पादरियों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो ईसाइयों को संरक्षित करेंगे। वहीं, 50 लाख हिंदू आबादी को साधने के लिए ट्रंप ने ट्वीट किया, “बांग्लादेश और विश्वभर में हिंदू समुदाय के साथ जो बर्बर अत्याचार हो रहे हैं, वे निंदनीय हैं।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनकी सरकार होती तो ऐसा नहीं होता। ऐसे बयानों से भारतीय मूल के अमेरिकी वोटरों पर खासा असर चुनाव नतीजों में देखने को मिला।
  4. अर्थव्यवस्था बड़ा मुद्दा: कोरोना के बाद आई मंदी से अब तक अमेरिका की जीडीपी 2.5 से 3% बनी रही, लेकिन महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। कॉस्ट ऑफ लिविंग भी बढ़ती जा रही थी, जिससे वोटरों में नाराजगी थी।
  5. आयकर खत्म करने का वादा: ट्रंप ने चुनावी रैलियों के दौरान वोटरों से वादा किया कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो इनकम टैक्स खत्म कर देंगे और इसकी भरपाई के लिए दूसरे देशों से आयात होने वाली वस्तुओं पर टैरिफ लगाएंगे। भारत में भले ही नेता चुनाव के बाद अपने बयानों से मुकर जाते हैं, लेकिन अमेरिका के चुनाव में ऐसी परंपरा नहीं है।
  6. कमला हैरिस की दावेदारी में देरी: चुनाव से ठीक 2 महीने पहले, डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने चुनाव लड़ने से मना करते हुए अपने वाइस प्रेसिडेंट कमला हैरिस का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया। चुनाव के दौरान, भले ही कमला हैरिस बाइडेन कार्यकाल के दौरान हुई गलतियों से पीछा छुड़ाने और अपने शासन को बाइडेन से अलग तरीके से चलाने की बात कहती रहीं, लेकिन लोगों ने भरोसा नहीं जताया। कमला हैरिस के आने से पहले चुनावी मुकाबला एकतरफा दिख रहा था क्योंकि बाइडेन की सार्वजनिक डिबेट में हार और बढ़ती उम्र को लेकर वोटरों का झुकाव ट्रंप की तरफ था। वहीं, कमला की उम्मीदवारी के बाद कुछ हद तक मुकाबला बेहतर हुआ, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इस बार महिला कैंडिडेट होने के बावजूद भी अश्वेत, लैटिन, और एशियाई समूह की महिलाओं का झुकाव कमला हैरिस की ओर घटा है। जहां 2020 के चुनाव में बाइडेन को अश्वेत महिलाओं का 57% वोट मिला था, वहीं इस बार के चुनावी नतीजों में कमला हैरिस केवल 54% वोट पाने में सफल रही हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप को फोन पर राष्ट्रपति चुनाव में शानदार जीत के लिए बधाई दी। मोदी ने इस बात की जानकारी अपने एक्स अकाउंट पर साझा करते हुए कहा कि मेरे मित्र डोनाल्ड ट्रंप से अच्छी बातचीत हुई। भारत ने अमेरिका के साथ टेक्नोलॉजी, रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष और कई अन्य क्षेत्रों में मिलकर काम करने की उम्मीद जताई है।

ट्रंप के पिछले कार्यकाल से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत–अमेरिका के रिश्ते आने वाले दिनों में और बेहतर होंगे। 2017 से 2021 के दौरान भारत और अमेरिका के बीच कई अहम समझौते हुए थे।

ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के बीच व्यापार बढ़ा। वर्तमान में, अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। भारत के वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक देश भी अमेरिका है। 2023-2024 में भारत ने अमेरिका से 42.2 बिलियन डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था, जबकि भारत ने अमेरिका को 77.52 बिलियन डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया। ट्रंप ने हाल ही में एक आर्थिक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि भारत, ब्राजील और चीन टैरिफ के मामले में सख्त हैं। ट्रंप ने भारत को टैरिफ के मामले में एक बड़ा “एब्यूजर” भी बताया था। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए उन्हें एक शानदार व्यक्ति भी कहा। ट्रंप ने चुनाव के दौरान यह भी कहा था कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद चीन, भारत और ब्राजील जैसे देशों पर टैरिफ बढ़ाए जाएंगे, जबकि अमेरिकी जनता पर से इनकम टैक्स हटा दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है, तो रुपया डॉलर के मुकाबले अपने निचले स्तर पर जा सकता है।

अगर ट्रंप पिछले कार्यकाल की तरह इस बार भी चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाते हैं, तो इसका फायदा भारतीय बाजार को हो सकता है। ट्रंप ने भारत को भले ही टैरिफ एब्यूजर कहा हो, लेकिन उन्होंने चीन को ज्यादा सख्त टैरिफ लगाने वाले श्रेणी में रखा है। अपने पिछले कार्यकाल के दौरान भी ट्रंप ने ईरान पर तेल निर्यात प्रतिबंध लगाने के बावजूद भारत को अलग से निर्यात छूट दी थी। रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने के मामले में, अमेरिका ने CAATSA कानून के तहत चीन और तुर्की पर प्रतिबंध लगा दिए थे, लेकिन भारत को कानून में बदलाव कर विशेष छूट दी गई थी। हां, यह भी नहीं भूलना चाहिए कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का विशेष व्यापार दर्जा खत्म कर दिया था।

ट्रंप ने चुनाव के दौरान और उससे पहले कई बार कहा है कि अगर वे राष्ट्रपति बनते हैं तो विश्व में चल रहे युद्धों को खत्म कर शांति लाएंगे। हाल ही में, ट्रंप ने अमेरिकी यहूदी-मुस्लिम समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि सत्ता में आते ही इजरायल-हमास/लेबनान के संघर्ष को पूरी तरह समाप्त कर देंगे। ट्रंप अपने पॉडकास्ट और टीवी इंटरव्यू में कह चुके हैं कि अमेरिकी टैक्सपेयर्स का पैसा वे दूसरे देशों के युद्धों पर खर्च नहीं होने देंगे। ट्रंप यूक्रेन को दी जा रही सैन्य और आर्थिक मदद की हमेशा आलोचना करते रहे हैं। उनका मानना है कि यूक्रेन पिछले 3 सालों से युद्ध में इसलिए टिका है क्योंकि अमेरिका का पूरा समर्थन रहा है।

साल 2021 में बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद, चीन के साथ रूस की करीबी बढ़ने के कारण भारत-रूस के रिश्तों में खटास देखने को मिली है। रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण रूस पूरी तरह चीन पर निर्भर हो चुका है, जो भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद रूस से प्रतिबंध हटने की संभावना है। खास बात यह भी है कि 2020 में कोविड और रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगने के बाद भारत-रूस के व्यापार में 30% की बढ़ोतरी हुई है। ट्रंप ने 2017 में सत्ता संभालते ही क्वॉड ग्रुप का पुनर्जीवन किया, जिसमें अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने और चीन की विस्तारवादी सोच को रोकने के लिए अमेरिका ने क्वॉड का निर्माण किया। भारत के दृष्टिकोण से क्वॉड महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन और रूस की बढ़ती दोस्ती और भविष्य में आने वाले संकटों को देखते हुए हमें एक ऐसे देश की जरूरत पड़ेगी जो चीन का मुकाबला करने में सक्षम हो।

ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल के दौरान भले ही सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर विवादास्पद टिप्पणियाँ करने के लिए जाने गए हों। इसके लिए ट्विटर ने उन्हें बैन भी कर दिया था, जिसके बाद ट्रंप ने अपना नया Truth Social एप्लीकेशन भी लॉन्च किया। ट्रंप ट्विटर पर नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग के साथ हर दूसरे दिन परमाणु युद्ध की धमकी देते थे, लेकिन इसके विपरीत, उन्होंने जमीनी स्तर पर कई देशों के बीच शांति समझौते भी करवाए। साल 2020 में, ट्रंप ने अब्राहम समझौते के तहत इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को के बीच सामान्य संबंध स्थापित करने के लिए पहल की। इस समझौते के बाद, यूएई इजरायल को मान्यता देने वाला तीसरा अरब देश बन गया।

दूसरा महत्वपूर्ण समझौता ट्रंप ने परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग के साथ तीन महत्वपूर्ण वार्ताओं के रूप में किया। इसके तहत परमाणु संयंत्रों को बंद करना और लॉन्ग-रेंज प्रतिबंधित मिसाइल के परीक्षण पर रोक लगाना शामिल था। भले ही इससे अधिक सकारात्मक परिणाम नहीं मिले, लेकिन इस पहल ने युद्ध का रास्ता छोड़ बातचीत के जरिए समस्या का हल निकालने का रास्ता दिखाया।

अमेरिका ने अब तक रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन को लगभग 113 अरब डॉलर की मदद की है। वहीं, अमेरिका ने 1959 से अब तक इजरायल को 250 बिलियन डॉलर की सैन्य सहायता दी है, जिसमें पिछले एक साल में 23 बिलियन डॉलर की मदद भी शामिल है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी टैक्सपेयर्स के पैसे को अन्य देशों के युद्धों पर खर्च करने पर सवाल उठाते रहे हैं। 7 अक्टूबर 2023 से अब तक, इजरायल हमास/लेबनान के साथ युद्ध में 66 मिलियन डॉलर खर्च कर चुका है।

Leave a comment