
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिनों तक चले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद अब भारत लौट चुके हैं। रूस के कज़ान शहर में हुए 16वें ब्रिक्स सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई थीं। यह सम्मेलन भारत के लिए भी बेहद अहम रहा। कज़ान में मोदी का स्वागत रूसी पारंपरिक अंदाज में किया गया। नमक, ब्रेड, लड्डू और श्रीकृष्ण की मधुर धुनों के साथ किए गए स्वागत की भव्य तस्वीर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट की और लिखा कि ऐसा जुड़ाव कहीं और नहीं मिलता। दरअसल, रूस में रोटी और नमक को पवित्र मित्रता और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। इस ब्रिक्स महासम्मेलन में भारत समेत 23 देशों ने हिस्सा लिया, और इस बार ब्रिक्स में पांच नए देश जुड़े, जिनमें इथियोपिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, और ईरान शामिल हैं। ब्रिक्स के आधिकारिक सदस्यों की संख्या अब 10 हो गई है, और 13 देशों को साझेदार देश का दर्जा भी दिया गया है।
भारत के लिए ब्रिक्स सम्मेलन क्यों था खास ?
इस बार का ब्रिक्स सम्मेलन भारत के लिए रणनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण रहा। भारत ने ब्रिक्स में भाग लेकर कई महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के साथ अच्छे संबंधों के बावजूद भी भारत उन पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकता है। हाल ही में, भारत विरोधी खालिस्तानी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर और गुरपतवंत सिंह पन्नू के कारण कनाडा और अमेरिका ने भारत की आलोचना की थी। यहां तक कि कनाडा ने भारतीय राजनयिक संजय वर्मा पर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में सम्मिलित होने का आरोप लगाया था, जिसके बाद भारत ने अपने छह राजनयिकों को कनाडा से वापस बुला लिया।
ब्रिक्स समिट शुरू होने से ठीक 24 घंटे पहले भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी कि भारत और चीन के बीच 2020 से चल रहे लद्दाख सीमा विवाद पर सहमति बन गई है। अब दोनों देश 2020 से पहले की स्थिति में लौटने को तैयार हो गए हैं। बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यह कोई साधारण समझौता नहीं है, और इसे समिट शुरू होने से पहले इतनी जल्दी सुलझाने के पीछे कई महीनों की तैयारी रही है। इस मुद्दे को सुलझाने में रूस का भी बड़ा योगदान है; जब प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन दौरे के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को मास्को भेजा था, उस दौरान डोभाल ने पुतिन के साथ-साथ मॉस्को में उपस्थित चीनी विदेश मंत्री वांग यी से भी सीमा विवाद पर विस्तार से चर्चा की।
भारत रूस के लिए क्यों है इतना महत्वपूर्ण ?
भारत सरकार और कई न्यूज़ आउटलेट्स ने इस दौरे को मोदी द्वारा किए गए रूस-यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता के प्रयास के रूप में देखा, लेकिन पुतिन ने सोची-समझी रणनीति के तहत भारत और चीन के आपसी विवाद को सुलझाने के लिए बड़ा कदम उठाया। पुतिन जानते हैं कि भारत-चीन में विवाद बढ़ने से रूस को सीधा नुकसान होगा और भारत के पश्चिमी देशों के साथ संबंध मजबूत हो जाएंगे, जिससे रूस को आर्थिक और सामरिक दृष्टि से भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
हाल ही में खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू और हरदीप सिंह निज्जर के मुद्दे पर भारत के कनाडा और अमेरिका के साथ रिश्तों में खटास आई थी। इस मौके का फायदा उठाते हुए रूस ने दोनों देशों के बीच सहमति बनाने का प्रयास किया है। रूस भारत की अहमियत को समझता है; युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर 15,000 से ज्यादा प्रतिबंध लगाए और उसे अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली से बाहर कर दिया, जिससे कई अमेरिकी कंपनियों ने रूस में अपना कारोबार बंद कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध और अमेरिकी दबाव के बावजूद भी भारत ने रूस के साथ व्यापार को घटाया नहीं, बल्कि और बढ़ा दिया। कोविड के बाद कच्चे तेल की बढ़ती मांग के चलते रूस ने सस्ते दामों में बड़ी मात्रा में कच्चे तेल की आपूर्ति भारत को की, और उर्वरक एवं हथियारों की आपूर्ति भी बढ़ाई।
भारत और रूस के बीच बढ़ते व्यापार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां युद्ध से पहले भारत रूस के साथ केवल 10 बिलियन डॉलर का व्यापार करता था, वहीं आज यह बढ़कर 64 बिलियन डॉलर हो चुका है। जुलाई 2024 में प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन ने अपने द्विपक्षीय वार्ता में 2030 तक दोनों देशों के बीच 100 बिलियन डॉलर तक व्यापार का लक्ष्य रखा है।
ब्रिक्स क्या है ?
ब्रिक्स एक अंतरराष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 2006 में हुई थी। ब्राजील, रूस, भारत, और चीन इसके संस्थापक सदस्य हैं। 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल हो जाने के बाद इसका नाम ‘ब्रिक’ से बदलकर ‘ब्रिक्स’ कर दिया गया। ब्रिक्स का महत्व इसलिए भी है क्योंकि विश्व की कुल जनसंख्या का 45% हिस्सा ब्रिक्स देशों में रहता है और इनकी अर्थव्यवस्था का कुल मूल्य 28.5 ट्रिलियन डॉलर है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था का 28% है। ब्रिक्स के देशों का योगदान वैश्विक कच्चे तेल के उत्पादन में करीब 44% है। पांच नए सदस्य देशों के जुड़ने के बाद ब्रिक्स में अब कुल 10 सदस्य हो गए हैं। ब्रिक्स ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वर्ल्ड बैंक की तर्ज पर 2014 में न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की थी, जिसे ‘ब्रिक्स बैंक’ भी कहा जाता है। 2022 के अंत तक इस बैंक ने सहयोगी देशों को सड़कों, पुलों, रेलवे, और जल आपूर्ति परियोजनाओं के लिए 32 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है।
ब्रिक्स समिट में किन मुद्दों पर चर्चा हुई ?
ब्रिक्स के सदस्य देशों ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की, जिनमें बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में विकासशील देशों को स्थान देने, लेबनान में इज़रायल द्वारा किए गए हमलों की निंदा करना, और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। सबसे महत्वपूर्ण चर्चा ब्रिक्स सदस्य आपसी कारोबार में स्थानीय मुद्दों के इस्तेमाल की बात कही गई, साथ में आने वाले दिनों में भुगतान की नई व्यवस्था को लेकर विचार विमर्श करने पर जोर दिया गया। ब्रिक्स देश कई सालों से डॉलर के बजाय ब्रिक्स मुद्रा लाने की बात कर रहे हैं। हालाँकि कज़ान समिट में ब्रिक्स नोट जारी नहीं किए गए, लेकिन आने वाले दिनों में इसकी आधिकारिक पुष्टि होने की संभावना प्रबल है। पुतिन कजान समिट के दौरान अपने हाथों में ब्रिक्स करैंसी का एक सैंपल नोट कई देशों के समकक्षों को दिखाते नजर आए थे।
विकासशील देशों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, जलवायु संरक्षण, और स्थानीय मुद्दों में व्यापार बढ़ाने के लिए न्यू डेवलपमेंट बैंक को ‘न्यू विकास बैंक’ के रूप में विकसित करने पर सहमति बनी।
प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद से निपटने के लिए ब्रिक्स देशों के एकजुट रहने की बात कही और चीन को इशारों में संदेश देते हुए कहा कि आतंकवाद के मामले में दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए। पाकिस्तान और तुर्की ने भी ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन किया था, लेकिन भारत की असहमति के कारण इन दोनों देशों को शामिल नहीं किया गया। दरअसल ब्रिक्स में कोई भी निर्णय मतदान के जरिए नहीं बल्कि सर्वसम्मति से लिया जाता है।