
राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर जल्द ही बिहार के चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। ऐसी उम्मीद है कि प्रशांत आने वाली गांधी जयंती के दिन अपनी पार्टी का औपचारिक ऐलान करेंगे। आगामी विधानसभा चुनावों में राज्य की राजनीति एक बार फिर से महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। इस बार “जन सुराज” नामक एक नई राजनीतिक धारा की उभरती भूमिका पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यह धारा न केवल बिहार की मौजूदा राजनीतिक संरचना को चुनौती दे रही है, बल्कि राज्य के विकास और जनकल्याण को एक नई दिशा देने का वादा कर रही है।
प्रशांत द्वारा जनता तक पहुंचने की कोशिश
अपनी राजनीतिक पूंजी को मजबूत करने के लिए किशोर राज्यव्यापी पदयात्रा पर हैं, जिसकी शुरुआत उन्होंने 2022 में गांधी जयंती पर की थी। इस पदयात्रा में उन्होंने अब तक 5,500 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की है और बिहार के 38 जिलों में से 18 जिलों तक पहुँचे हैं। शेष जिलों में उन्होंने वाहन के माध्यम से संपर्क स्थापित किया है।
किशोर की चुनावी महत्वाकांक्षाएं किसी की नजर से नहीं बची हैं, और अब तक आलोचना मुख्य रूप से भाजपा विरोधी दलों, खासकर राजद की ओर से हुई है, जिसने उन पर “भाजपा की बी-टीम” होने का आरोप लगाया है। राजद नेताओं ने किशोर द्वारा उनकी पार्टी पर लगातार किए जा रहे हमलों की ओर इशारा किया है, जिसमें उन्होंने तेजस्वी यादव को केवल “लालू प्रसाद का बेटा” बताकर बार-बार खारिज किया है। बदले में किशोर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर “नौकरशाही का जंगलराज” चलाने का आरोप लगाया है, जबकि लालू-राबड़ी शासन को “प्रशासनिक जंगलराज” बताया है।
खुद को “अलग राजनीति” के समर्थक के रूप में स्थापित करते हुए, किशोर ने मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए ‘रोज़ी-रोटी’ के मुद्दों, यानी शिक्षा और नौकरी, पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे मतदाता जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोच सकें। महत्वपूर्ण बात यह है कि वे “जय बिहार!” के नारे का उपयोग करते हुए, शिक्षा के केंद्र के रूप में इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे बिहारी गौरव के विचार को बल मिले।
जन सुराज के लिए चुनावी चुनौतियाँ
जन सुराज के पास एक सशक्त दृष्टिकोण है, लेकिन उनके सामने कई चुनावी चुनौतियाँ भी हैं। पहली और प्रमुख चुनौती बिहार की जातीय राजनीति है। बिहार में चुनावी समीकरण अक्सर जातिगत आधार पर तय होते हैं, और जन सुराज को इस पारंपरिक ढाँचे को तोड़ना होगा। दूसरी चुनौती संसाधनों की कमी है। बड़े राजनीतिक दलों के पास अपने अभियानों के लिए विशाल संसाधन होते हैं, जबकि जन सुराज अभी भी एक नवोदित आंदोलन है। हालांकि, प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति और उनके नेतृत्व में जन सुराज को व्यापक समर्थन मिलने की संभावना है।
जन सुराज का संभावित प्रभाव
जन सुराज का चुनावी परिदृश्य पर प्रभाव अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसके संभावित प्रभावों पर चर्चा की जा सकती है। अगर जन सुराज अपने अभियान में सफल होता है, तो यह बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। पहली बार, जनता के मुद्दों पर केंद्रित एक आंदोलन को प्रमुखता मिलने की संभावना है, जो पारंपरिक राजनीति से हटकर एक नई राजनीतिक संस्कृति को जन्म दे सकता है।
यदि जन सुराज चुनावों में कुछ सीटें जीतने में सफल होता है, तो यह महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए एक चुनौती बन सकता है। छोटे और नए दलों की उपस्थिति चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकती है, और जन सुराज का प्रभाव विशेष रूप से उन क्षेत्रों में देखा जा सकता है जहाँ लोग मौजूदा राजनीतिक दलों से असंतुष्ट हैं।
इसके अलावा, किशोर के कुछ भाषणों से यह भी स्पष्ट होता है कि वे युवा मतदाताओं को आकृष्ट करने के लिए अधिक आकांक्षापूर्ण आख्यान का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने हाल ही में एक रैली में कहा, “यदि आपके परिवार में कोई लड़की सोशल मीडिया जानती है, तो मैं यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से उसे 8,000 से 10,000 रुपये तक की कमाई का आश्वासन दे सकता हूं।”