
2 साल से ज्यादा समय से चल रहे रूस – यूक्रेन युद्ध अब नरम पड़ते दिख रहा है। तीसरे विश्व युद्ध के आशांका को देखते हूए अमेरिका, ब्रिटेन और स्पेन जैसे देशों ने यूक्रेन को दिए जाने वाले कई हथियारों पर बैन लगा दिया है तो वहीं रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने शांति समझौते की पहल की है। यूक्रेन ने हाल ही में रूस के सुद्जा शहर को अपने कब्जे में ले लिया है। जिससे रूस खफा होकर अपने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव करने की बात कही है।
पुतिन का बयान चर्चा का विषय
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने व्लादिवोस्तोक में हुए इस्टर्न कोनामिक फॉर्म के बैठक के दौरान कहा कि हम यूक्रेन के साथ बातचीत के लिए तैयार है और इसमें हमारे सहयोगी देश चीन, भारत, ब्राजील मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं।
साथ में पुतिन ने यह भी कहा कि 2022 में इस्तांबुल में हुए समझौते को आधार बनाकर बातचीत को आगे बढ़ाई जा सकती है। दरअसल तुर्की के सहयोग से साल 2022 में रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर शांति समझौते हुए थे लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण इसे आज तक लागू नहीं किया गया। समझौते के तहत यूक्रेन को डोनेट्स्क, खेरसॉन, लुहांस्क और ज़ापोरिज्जिया क्षेत्रों से अपने सैनिक हटाने और भविष्य में यूक्रेन कभी नाटो का सदस्य ना बनने की बात कही गई थी जिससे यूक्रेन ने मानने से इनकार कर दिया था जिसके बाद यह समझौता कभी लागू नहीं हो पाया।
यह बयान इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन की यात्रा की है और इससे ठीक 45 दिनों पहले मोदी रूस के दो दिवसीय यात्रा पर थे उसे वक्त मोदी राष्ट्रपति पुतिन से गले मिलने को लेकर वेस्टर्न देशों ने भारत पर खूब तंज कसा था।
मोदी 23 जुलाई 2024 को रूस के दो दिवसीय दौरे पर थे जहां उनका भव्य स्वागत हुआ। पुतिन ने मोदी को अपने फार्म हाउस में घुमाया, दोनों नेताओं के बीच कई अहम समझौते हुए जिससे भारत रूस के साथ 100 बिलियन डॉलर का व्यापार करने का लक्ष्य रखा गया। रूस के द्वारा भारत में 6 न्यूक्लियर प्लांट स्थापित करने की बात कही गई। साथ में प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से रूस यूक्रेन विवाद को बातचीत के जरिए समाधान निकालने को कहा।
क्या भारत अमेरिका और रूस के साथ अपने रिश्ते बैलेंस रखना चाहता है ?
भारत में हमेशा तटस्थता बनाकर रखी। चाहे वो शीत युद्ध के समय नॉन एलाइनमेंट समूह का हिस्सा होना हो या हाल में चल रहे रूस – यूक्रेन युद्ध में किसी एक पक्ष के तरफ ज्यादा झुकाव न होना।
हाल के सालों में अमेरिका और भारत के संबंध गहरे हुए हैं। चाहे वो व्यापार के क्षेत्र में हो या रक्षा के क्षेत्र में। भारत अमेरिका के साथ सबसे ज्यादा वस्तुएं और सेवाओं का निर्यात करता है जो कुल निर्यात का 17 फीसद है। रक्षा के क्षेत्र में पहले की तुलना में भारत आज अमेरिका से हथियारों का आयात भी ज्यादा मात्रा में करता है। जिसकी कुल लागत 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत का संबंध अमेरिका और वेस्टर्न देश के साथ अच्छे हुए हैं तो वहीं रूस के से दूरियां बढ़ी है। यूक्रेन रूस युद्ध के कारण अमेरिका ने रूस के 500 कंपनियों पर बैन लगा दिए। डॉलर को फ्रिज कर दिया गया जिसके कारण रूस के निर्भरता चीन पर बढ़ती चली गई तो वहीं रूस चीन नजदीकियां के कारण भारत ने असहजता जरुर महसूस की लेकिन व्यापार पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गए। रूस पर प्रतिबंध के बावजूद भारत ने रूस से सस्ते दामों में भाड़ी मात्रा में कच्चे तेलों का आयात किया।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन गए तो वहां उन्होंने युद्ध में मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि दी। और साथ में मेडिकल सहायता के लिए यूक्रेन को चार भीष्म क्यूब भी सौंप जो यह दिखाता है कि भारत का झुकाव किसी एक पक्ष की ओर नहीं है। मोदी ने रूस – यूक्रेन युद्ध खत्म करने का आवाहन भी किया साथ में मोदी ने जलेंस्की को युद्ध खत्म करने को लेकर व्यक्तिगत मदद का भी आश्वासन दिया। मोदी ने इस पहल के बाद अमेरिका सहित कई देशों ने इसका स्वागत किया और अब रूस खुद भारत को मध्यस्थता करने की बात कह रहा है।