फ्रांस के चौंकाने वाले चुनाव परिणाम, वामपंथी पार्टी पहले नंबर पर…

ब्रिटेन के बाद अब फ्रांस में भी हुए चुनाव में मौजूदा सत्ताधारी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। खास बात यह है कि दोनों देशों में सदन का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उसे भंग कर दिया गया था। 577 सीटों वाली नेशनल असेंबली के चुनाव में इमैनुएल मैक्रों की रेनेसां पार्टी को 163 सीटों पर जीत मिली, जबकि वामपंथी न्यू पॉपुलर फ्रंट सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से 107 सीटें कम रहकर उसे 182 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। वहीं, तीसरे स्थान पर मरीन ले पेन की धुर दक्षिणपंथी पार्टी “नेशनल रैली” रही, जिसे 143 सीटें ही मिल सकीं। चुनाव से पहले हुए एग्जिट पोल में नेशनल पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलने का दावा किया जा रहा था, लेकिन चुनाव परिणामों ने सबको चौंका दिया। खास बात यह है कि फ्रांस के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, जिससे गठबंधन सरकार बनने के आसार हैं।

चुनाव में मैक्रों की पार्टी की हार के बाद, प्रधानमंत्री गेब्रियल अट्टल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। फ्रांस में राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री का चुनाव करता है, और अब पूर्ण बहुमत नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री दूसरी पार्टी से हो सकते हैं। फ्रांस में ज्यादातर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एक ही पार्टी से रहे हैं, जिससे देश में बड़े फैसलों या महत्वपूर्ण विधेयकों पर सहमति बनती रही है। लेकिन अब सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी ने नए प्रधानमंत्री के नाम की जल्द घोषणा करने की बात कही है। इससे पहले भी ऐसा हुआ था, जब समाजवादी लियोनेल जोस्पिन दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जैक्स शिराक के अधीन प्रधानमंत्री थे। 2000 में फ्रांस ने कई बड़े सुधारों को पारित होते देखा, जिनमें राष्ट्रपति द्वारा विरोध किए गए सुधार भी शामिल थे। उदाहरण के लिए, जोस्पिन ने शिराक के राष्ट्रपतित्व में काम के घंटों को सप्ताह में 39 से घटाकर 35 करने का सुधार पारित किया था।

क्या हार के बावजूद इमैनुएल मैक्रों राष्ट्रपति पद पर बने रहेंगे?

संसदीय चुनाव में मैक्रों की पार्टी भले ही हार गई हो, लेकिन इसके बावजूद मैक्रों अपने पद पर बने रहेंगे, क्योंकि फ्रांस में नेशनल असेंबली और राष्ट्रपति के चुनाव अलग-अलग होते हैं। 2022 के चुनाव में रेनेसां पार्टी को केवल 150 सीटें मिली थीं, इसके बावजूद भी इमैनुएल मैक्रों संसद में राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर पाए थे। इसका मतलब है कि इस बार भी मैक्रों दूसरे दलों के समर्थन से राष्ट्रपति बने रहने की कोशिश करेंगे।

मैक्रों ने कार्यकाल खत्म होने के 3 साल पहले ही संसद को भंग कर दिया। दरअसल, 8 जून को हुए यूरोपीय यूनियन के चुनाव में दक्षिणपंथी पार्टी की बुरी हार के बाद, 9 जून को मैक्रों ने संसद भंग कर चुनाव कराने का ऐलान किया। उनका यह दांव उल्टा पड़ गया, क्योंकि वे यह दिखाना चाहते थे कि यूरोपीय संघ में हार के बावजूद देश की जनता दक्षिणपंथी पार्टी के साथ है, लेकिन चुनाव परिणाम इसके विपरीत निकले।

पिछले कुछ सालों में फ्रांस में हुए दंगे, महंगाई, और हाल ही में हुए किसानों के भारी प्रदर्शन, डीजल सब्सिडी और वेतन में बढ़ोतरी की मांग को लेकर कई किसान संगठनों ने सरकारी कार्यालयों के बाहर कृषि कचरा फेंककर विरोध किया था। इसके अलावा, गठबंधन में गतिरोध होने के कारण संसद में पूर्ण बहुमत न होने से कई विधेयकों को पास नहीं किया जा सका।

इमैनुएल मैक्रों के राष्ट्रपति नहीं बनने से भारत को नुकसान?

मैक्रों 2014 से फ्रांस के राष्ट्रपति पद पर काबिज हैं, और भारत में नरेंद्र मोदी का कार्यकाल भी 2014 से है। इसके कारण भारत और फ्रांस के रिश्तों में पिछले एक दशक में काफी सुधार हुआ है, चाहे वह आर्थिक दृष्टिकोण से हो या कूटनीतिक तौर पर। भारत ने 2023 में 50 हजार करोड़ की लागत से 36 राफेल विमान खरीदे और तीन स्कॉर्पिन पनडुब्बियों की भी डील फाइनल की।

अगर मैक्रों राष्ट्रपति बने रहते हैं, तो भारत को यूरोपीय यूनियन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन करने में आसानी होगी, क्योंकि भारत लंबे समय से यूरोप के प्रमुख देशों के साथ इस पर चर्चा करता आ रहा है। भारत 2014 से लेकर अब तक 14 देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन कर चुका है। भारत फ्रांस के हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जो फ्रांस के कुल निर्यात का लगभग 30% है।

रणनीतिक तौर पर भी फ्रांस के मौजूदा राष्ट्रपति का भारत को समर्थन मिलता रहा है, चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में भारत को स्थायी सदस्य बनाने की मांग का समर्थन हो, आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में एक साथ खड़े रहना हो, या प्रशांत महासागर में भारत के साथ अपनी मौजूदगी दिखाना हो। अगर मैक्रों की जगह कोई और राष्ट्रपति चुने जाते हैं, तो यह भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं होंगे, क्योंकि वामपंथी न्यू फ्रंट पार्टी का रवैया भारत के प्रति उतना सकारात्मक नहीं रहा है।

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