युद्ध के बीच मोदी को रूस का सर्वोच्च सम्मान मिलने से अमेरिका में नाराजगी ?

देश में नई सरकार के गठन के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर हैं। यह दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी का यह पहला विदेश दौरा है। प्रधानमंत्री मोदी को रूस के राष्ट्रपति पुतिन द्वारा रूस का सर्वोच्च सम्मान दिए जाने के बाद भारत से लेकर पूरी दुनिया में इस पर चर्चा हो रही है।

वेस्टर्न मीडिया ने मोदी-पुतिन की मुलाकात को लेकर मोटे अक्षरों में हेडलाइन छापी हैं और साथ में मोदी पर जेलेंस्की द्वारा लगाए गए आरोप को भी खूब हवा दे रही है। दरअसल, रूस दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से गले मिले, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद वेस्टर्न तथाकथित लोकतांत्रिक विचारों के पैरोकारों के प्रतिक्रियाएं आने शुरू हो गईं, जिसमें जेलेंस्की ने सोशल मीडिया पोस्ट कर लिखा, “दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री एक ब्लडी क्रिमिनल से गले मिल रहा है।”

यह पोस्ट सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई, जिसके बाद अमेरिका के व्हाइट हाउस को भी बयान जारी कर कहना पड़ा, “भारत हमारा एक रणनीतिक साझेदार है जिससे हम खुलकर बात करते हैं। इसमें भारत और रूस के संबंध भी शामिल हैं। यूक्रेन के मुद्दे पर स्थायी और न्यायपूर्ण शांति के प्रयासों का भारत सहित सभी देश समर्थन करें।” अमेरिका का यह बयान सधा हुआ इसलिए भी है क्योंकि एशिया में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने और चीन को साधने के लिए अमेरिका को भारत की जरूरत है।

प्रधानमंत्री मोदी का रूस दौरा भारत के लिए क्यों है खास ?

रूस ने भारत का गर्मजोशी से स्वागत किया है। खुद रूस के प्रथम उप प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव नरेंद्र मोदी को रिसीव करने एयरपोर्ट आए। इसके साथ ही राष्ट्रपति पुतिन ने मोदी से अपने फार्म हाउस पर अनौपचारिक मुलाकात की और दोनों नेताओं ने साथ मिलकर डिनर भी किया। पुतिन ने मोदी को अपने गोल्फ कोर्स और अस्तबल भी दिखाए। आमतौर पर पुतिन किसी राष्ट्राध्यक्ष को सिर्फ आधिकारिक आवास पर ही आमंत्रित करते हैं, लेकिन मोदी को इस तरह का भव्य स्वागत कर और एक-दूसरे के गले लगकर दुनिया को यह दिखाने की कोशिश की गई कि आज भी भारत और रूस एक-दूसरे के अच्छे मित्र हैं। भारत इकलौता ऐसा देश है जो रूस और अमेरिका दोनों के साथ अपने अच्छे रिश्ते रखता है। अमेरिका की लाख कोशिशों के बावजूद भी भारत ने अपनी तटस्थता बनाए रखी है, चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ वोटिंग न करने की बात हो या रूस से कच्चे तेल और हथियारों की आपूर्ति लेने की बात हो।

भारत रूस के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि आज के समय में रूस का वेस्टर्न देशों द्वारा बहिष्कार के कारण चीन से नजदीकियाँ बढ़ रही हैं, जो भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। चीन भारत पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है। “द हिंदू” में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के लिए पाकिस्तान से ज्यादा खतरनाक और नुकसानदेह चीन है। वहीं दूसरी ओर, एशिया में चीन की बढ़त को रोकने के लिए अमेरिका भारत के साथ पिछले कई सालों से साझा रणनीति पर काम कर रहा है। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह वही अमेरिका है जिसने 70 सालों तक कभी भारत का साथ नहीं दिया, चाहे वह परमाणु परीक्षण का मामला हो, भारत के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान का साथ देना हो, या कारगिल युद्ध में मैप जियो टैगिंग देने से मना करना हो। इसलिए भारत रूस के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों को खराब नहीं करना चाहता है।

भारत-रूस द्विपक्षीय वार्ता में किन मुद्दों पर चर्चा हुई?

मोदी और पुतिन की अध्यक्षता में 22वां भारत-रूस शिखर सम्मेलन 9 जुलाई 2024 को संपन्न हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस में फंसे 40 भारतीयों को, जिन्हें रोजगार के नाम पर बुलाकर युद्ध में धकेल दिया गया, छुड़ाने की मांग रखी। इसके अलावा, भारत और रूस के बीच आर्थिक और रणनीतिक तौर पर आगे बढ़ने को लेकर भी चर्चा हुई।

अब रूस भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करेगा, साथ ही पूरे देश में 6 न्यूक्लियर प्लांट भी लगाएगा क्योंकि अमेरिका ने रूस के यूरेनियम सप्लाई को बैन कर दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के समय से भारत को बम, बारूद और अन्य हथियारों की आपूर्ति में कमी आने को लेकर भी पीएम मोदी ने चर्चा की।

वार्ता में सबसे अहम बात जो कही गई, वह यह है कि 2030 तक भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार को 65 अरब डॉलर से बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है। मोदी और पुतिन ने दोनों देशों के रिश्तों में नया आयाम लाने की बात कही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने रूस की तारीफ करते हुए कहा, “जब दुनिया युद्ध के कारण खाद्य सामग्री, ईंधन, और उर्वरक की कमी महसूस कर रही थी, तब रूस ने हमारी मदद की, जिससे किसानों को राहत मिली। उर्वरक और कच्चे तेल की खरीद से भारत को महंगाई से लड़ने में भी मदद मिली।”

भारत का रूस के साथ व्यापार कब बढ़ा ?

आज के समय में, जब पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध, महंगाई, और आर्थिक अस्थिरता से गुजर रही है, तो भारत-रूस की यह द्विपक्षीय वार्ता इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंधों की झड़ी लगा दी, ऐसे में रूस ने अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वैकल्पिक विकल्प खोजे और कच्चे तेल, गैस, और हथियारों की आपूर्ति ज्यादातर एशियाई देशों को करना शुरू कर दिया। आज के समय में भारत रूस का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। अमेरिका द्वारा ईरान पर बैन लगाने के बाद से ही भारत ने कम दामों में रूस से भारी मात्रा में कच्चे तेल का आयात करना शुरू कर दिया। रूस पर बैन से न केवल एशियाई देशों को, बल्कि यूरोपीय देशों को भी नुकसान हुआ क्योंकि इंग्लैंड, फ्रांस, और जर्मनी जैसे बड़े देश भी प्राकृतिक गैस और तेल के लिए रूस पर निर्भर थे।

पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग करने के लिए डॉलर फ्रीज करने से लेकर ईरान से होने वाली तेल की आपूर्ति पर भी रोक लगा दी, जिसका असर भारत पर भी पड़ा। लेकिन अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत ने अपने देशहित को ध्यान में रखते हुए रूस से कच्चे तेल का आयात रोकने के बजाय बढ़ा दिया क्योंकि रूस सस्ती दरों में तेल उपलब्ध करवा रहा था और साथ ही उर्वरक भी लाखों टन में आयात किए।

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