
1. फ्रेशर स्टूडेंट्स को बिना किसी पैरवी के बड़े चैनलों में नौकरी मिलती है ?
बिलकुल मिलती है, और इसका जीता-जागता उदाहरण मैं खुद हूँ। बशर्ते उस स्टूडेंट के पास काबिलियत होनी चाहिए और वे स्किल्स होनी चाहिएं, जो उन न्यूज़ चैनलों की ज़रूरत होती हैं।
इंटर्नशिप के जरिए मीडिया में आने का मौका…
मीडिया चैनल फ्रेशर स्टूडेंट्स को इंटर्नशिप का मौका देते हैं, और यह इंटर्नशिप 3 से 6 महीने तक होती है। कई न्यूज़ चैनल अनपेड इंटर्नशिप कराते हैं, तो वहीं कुछ मीडिया हाउस फ्रेशर्स को 10 से 15 हजार रुपये तक का भुगतान भी करते हैं। चाहे अनपेड हो या पेड, इंटर्नशिप के दौरान फ्रेशर्स को सीखने का अवसर अवश्य मिलता है। इंटर्नशिप खत्म होने के बाद उनकी योग्यता के आधार पर जॉब दी जाती है।
एक सवाल जो ज्यादातर मीडिया छात्रों के मन में उठता है: क्या हमें फ्री में इंटर्नशिप करनी चाहिए या नहीं?
अगर उस मीडिया संस्थान में आपको नई चीजें सीखने को मिल रही हैं और वह एक नेशनल चैनल है, तो यह आपके लिए प्लस प्वाइंट है। अगर यूट्यूब चैनल में मौका मिल रहा है, तो आपको उसके सब्सक्राइबर्स और चैनल के ग्रोथ को देखकर जॉइन करना चाहिए, ताकि बाद में आप अपने रिज्यूमे में दिखाकर अच्छे चैनलों में मौका पा सकें।
फ्रेशर्स को ट्रेनी रोल के जरिए मीडिया में जाने का मौका…
आज के समय में न्यूज़ चैनल नए फ्रेशर ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को डायरेक्ट प्लेसमेंट के जरिए या ओपन वैकेंसी के माध्यम से “ट्रेनी डेज़िग्नेशन” पर हायर करते हैं। एक साल तक ट्रेनिंग के दौरान उन्हें सभी विभागों में अलग-अलग स्किल्स सिखाई जाती हैं। फिर, एक साल बाद उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें परमानेंट रोल दे दिया जाता है।
सभी क्षेत्रों में नेपोटिज़्म है, ठीक वैसे ही मीडिया इंडस्ट्री में भी है, लेकिन यहाँ स्किल्स भी उतनी ही मायने रखती हैं। क्योंकि बीटेक किया हुआ व्यक्ति रोज़ अपने दफ्तर में दो प्लस दो और कलकुलेशन से समस्याओं का हल ढूंढ लेता है, लेकिन एक पत्रकार को हर दूसरे दिन खाली पेज पर नई कहानी लिखनी पड़ती है।
2. एंकर और रिपोर्टर बनने वाले दोस्तों के लिए एक जरूरी सलाह…

आज के समय में ज्यादातर स्टूडेंट्स एंकर या रिपोर्टर बनना चाहते हैं, वह भी “आज तक”, “एबीपी न्यूज़” और दूसरे नेशनल न्यूज़ चैनल्स में। एक सवाल मैं आप नवोदित पत्रकारों से पूछना चाहता हूँ—कोई भी न्यूज़ चैनल आपको सीधे रिपोर्टर/एंकर कैसे बना सकता है? क्योंकि रिपोर्टर बनने के लिए डेस्क का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। आपको यह पता होना चाहिए कि असाइंमेंट किस व्यक्ति से समन्वय करेगा, खासकर जब कोई बड़ी घटना किसी राज्य के छोटे से जिले में घटी हो, या मुख्यमंत्री से बाइट लेनी हो। किस खबर पर पीटीसी (पीस टू कैमरा) लेनी है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाइट या पीटीसी करने के बाद आपको पूरी स्टोरी लिखनी होती है, जिसमें आगे का अपडेट और किस तस्वीर का उपयोग महत्वपूर्ण खबरों में किया जाएगा, इसका भी उल्लेख करना पड़ता है।
वहीं, एंकर बनने के लिए सबसे पहले आपको आउटपुट डिपार्टमेंट के डेस्क पर काम करना जरूरी है, क्योंकि टेलीप्रॉम्प्टर पर सीमित जानकारियाँ ही होती हैं और आपको उस खबर को 1 से 2 घंटे तक चलाना होता है। अगर आपके पास पहले से डेस्क पर खबर लिखने का अनुभव है, तो आप अपनी बातों को लंबे समय तक बेहतर तरीके से रख पाएंगे।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कई बार आपको टेलीप्रॉम्प्टर नहीं मिलेगा, और आपको खबर बतानी होगी। ऐसी परिस्थितियों में आप क्या करेंगे? मैंने देखा है कि 10+ साल के अनुभव वाले एंकर भी बिना टेलीप्रॉम्प्टर के कई बार घबरा जाते हैं। इसलिए आपको डेस्क पर खबर लिखने की प्रैक्टिस होनी चाहिए।
आज के समय में शिफ्ट्स को लेकर सभी को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन एंकरों पर इसका ज्यादा प्रभाव होता है। न्यू मीडिया टेक्नोलॉजी के आने के बाद, खबरों की दुनिया में सारे चैनल एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में रहते हैं, जिससे कई बार लगातार बुलेटिन के चलते एंकरों की शिफ्ट्स 15 घंटे तक लंबी हो जाती हैं। इसके लिए भी आपको तैयार रहने की जरूरत है।
न्यूज़ एंकर और रिपोर्टर बनने का वैकल्पिक माध्यम है डिजिटल मीडिया…
डिजिटल मीडिया में युवा साथियों को काम करने के ज्यादा अवसर मिलते हैं, और आज के समय में न्यूज़ चैनल्स भी अपने डिजिटल प्लेटफार्म का तेजी से विस्तार कर रहे हैं। इससे सोशल मीडिया प्रोड्यूसर, मल्टीमीडिया प्रोड्यूसर, सोशल मीडिया एग्जीक्यूटिव इत्यादि की हायरिंग तेजी से हो रही है। अगर एक फ्रेशर डिजिटल डिपार्टमेंट में प्रोड्यूसर के तौर पर हायर होता है, तो वह स्क्रिप्ट भी लिखता है, रिसर्च भी खुद करता है, और खुद एंकर की भूमिका में प्रजेंट भी करता है। कई डिजिटल एंकर आज के समय में टीवी एंकर से न सिर्फ ज्यादा पैसे कमा रहे हैं, बल्कि उनके व्यूअर्स की संख्या भी करोड़ों में है। “एबीपी न्यूज़ डिजिटल” के एंकर अमित भाटिया और “ज़ी न्यूज़ डिजिटल” के एंकर अभिषेक मनचंदा के करोड़ों फॉलोअर्स हैं।
डिजिटल में फ्रेशर्स को टीवी न्यूज़ की तुलना में ज्यादा मौके मिलते हैं, और यहाँ आप अपने स्किल्स को भी बेहतर तरीके से निखार सकते हैं।
3. फ्रेशर्स स्टूडेंट्स को मीडिया में अपने अनुसार जॉब रोल मिलने पर ही ज्वाइन करना चाहिए
फ्रेशर्स को सबसे पहले मौकों पर ध्यान देना चाहिए। अगर आप एंकर या रिपोर्टर ही बनना चाहते हैं, लेकिन वैसा अवसर नहीं मिल पा रहा है, तो सबसे पहले जो भी ऑफर आउटपुट, इनपुट या डिजिटल डिपार्टमेंट से आए, आपको ज्वाइन कर लेना चाहिए। क्योंकि जब आप एक बार ज्वाइन कर लेंगे, तो बाद में आप डिपार्टमेंट बदल सकते हैं। रिपोर्टर और एंकर बनने के लिए भी पहले आपको इसी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है, क्योंकि ऐसा कोई रिपोर्टर नहीं है जिसने डेस्क पर काम न किया हो, और ऐसा कोई एंकर नहीं है जिसने आउटपुट में खबर न बनाई हो।
अगर आप ग्रेजुएशन के बाद लंबे समय तक अपने मनपसंद जॉब का इंतजार करेंगे, तो इसे आपके करियर गैप के तौर पर देखा जाएगा। यदि आपने पहले किसी चैनल या अखबार में किसी भी पद पर काम किया है, तो कोई भी संस्था आपको हायर करने में हिचकिचाएगी नहीं।
उदाहरण के तौर पर समझें, अगर आप फ्रेशर हैं और मीडिया में इंटर्नशिप की तलाश कर रहे हैं, और उसी समय आपको न्यूज़ प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में काम करने का मौका मिल रहा है, जबकि आपका पसंदीदा डिपार्टमेंट डिजिटल है, तो आप क्या करेंगे?
आपको तुरंत उस मौके को ज्वाइन कर लेना चाहिए और साथ ही दूसरे चैनलों के डिजिटल डिपार्टमेंट में मेल और सीवी भेजते रहना चाहिए। इसके साथ ही, जहाँ आप काम कर रहे हैं, वहाँ प्रोडक्शन की हर एक बारीकी को अच्छे से सीख लेना चाहिए। इसका फायदा आपको न्यूज़ के डिजिटल डिपार्टमेंट में भी मिलेगा। सभी डिपार्टमेंट आपस में जुड़े होते हैं, और आज के समय में मीडिया हाउस में इसी को देखते हुए मल्टीमीडिया प्रोड्यूसर की डिमांड सबसे ज्यादा है।
4. क्या एंकरिंग में सिर्फ लड़कियों को ही मौका मिलता है ?
यह तथ्य पूरी तरह सत्य नहीं है, लेकिन कुछ हद तक ऐसा होता है। न केवल न्यूज़ चैनल में, बल्कि ग्लैमर, टीवी और पर्दे की दुनिया में भी लोगों की पसंद ऐसी बन चुकी है, जिसके कारण एंकर के तौर पर लड़कियों को लड़कों की तुलना में थोड़ा अधिक महत्व दिया जाता है।
लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि लड़कों को मौका नहीं मिलता। अगर आप अच्छा प्रजेंट करते हैं, शब्दों में जादू है, कम शब्दों में अधिक जानकारी देने का हुनर है, अच्छा दिखते हैं (अच्छा दिखने का मतलब आपके रंग से बिल्कुल नहीं है), और आप आत्मविश्वासी हैं, तो आप भी एंकर बनने का मौका पा सकते हैं।
डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से यह भेदभाव भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है, क्योंकि न्यूज़ चैनलों के खुद के डिजिटल प्लेटफार्म पर बड़ी संख्या में युवाओं को न्यूज़ प्रेजेंटर और प्रोड्यूसर के तौर पर हायर किया जा रहा है। आज के समय में “न्यूज़” टीवी से ज्यादा डिजिटल मीडिया के माध्यम से देखना पसंद किया जा रहा है।
5. मीडिया चैनलों में काम करने के लिए फ्रेशर्स के पास किस स्किल्स का होना जरूरी है ?
मीडिया में काम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्किल्स होनी जरूरी हैं।
मीडिया में काम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्किल्स का होना जरूरी है। अगर आप हिंदी मीडिया हाउस या न्यूज़ चैनल में काम करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको शुद्ध हिंदी लिखनी आनी चाहिए, इंग्लिश टू हिंदी अनुवाद (Vice versa), आपकी व्याकरण सही होनी चाहिए, और शब्दों पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए।
वर्तमान में चल रही खबरों पर आपकी बारीकी से पकड़ होनी चाहिए। यदि आपको बेसिक मंगल टाइपिंग की जानकारी है, और कंप्यूटर स्किल्स में प्रीमियर प्रो, आफ्टर इफेक्ट, वीएफएक्स, ग्राफिक्स आदि आते हैं, तो ये आपके लिए प्लस पॉइंट्स हैं।
पैकेज बनाना, खबर लिखना और वॉइस ओवर करना यदि आपने इंटर्नशिप के दौरान सीखा है, तो आपको यहाँ और बेहतर मौके मिल सकते हैं। ये चीजें आप पूरी तरह न्यूज़ रूम में काम करना शुरू करेंगे, तो आपको सिखाई भी जाएंगी।
आम तौर पर मीडिया चैनलों के इंटरव्यू में क्या पूछे जाते हैं?
पहले राउंड में एक लिखित टेस्ट होता है, जिसमें इंग्लिश से हिंदी में अनुवाद दिया जाता है, 250 शब्दों में एक लेख लिखना होता है, और हाल में हुई घटनाओं पर आधारित 10 ऑब्जेक्टिव सवाल पूछे जाते हैं।
पहले राउंड में चयन होने के बाद, दूसरे राउंड में ग्रुप डिस्कशन होता है। डिस्कशन के दौरान आपको एक विषय दिया जाता है, जिस पर आपको 2 से 3 मिनट अपने विचार रखने होते हैं।
तीसरे राउंड में पीटीसी (Piece To Camera) होता है, जिसमें यह देखा जाता है कि आप कैमरा फ्रेंडली हैं या नहीं और आपका कॉन्फिडेंस चेक किया जाता है।
चौथे और आखिरी राउंड में इंटरव्यू कंडक्ट किया जाता है। इंटरव्यू के दौरान सबसे पहले आपके बारे में, आपका गृह राज्य, आपके द्वारा पूर्व में किए गए कार्यों का अनुभव, मौजूदा कंपनी को जॉइन करने की वजह, और हाल के मुद्दों पर आपकी जानकारी और एकेडमिक बैकग्राउंड से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं।
नोट: मैंने एबीपी न्यूज़ में होने वाले 4 राउंड के इंटरव्यू की प्रक्रिया बताई है। दूसरे ज्यादातर न्यूज़ चैनलों में सिर्फ लिखित और इंटरव्यू राउंड होते हैं।
6. फ्रेशर्स को फ्री में इंटर्नशिप करना चाहिए?
यह सवाल ज्यादातर स्टूडेंट्स के मन में होता है, और वे इस बारे में कई बार काफी कन्फ्यूज रहते हैं। मेरा मानना है कि अगर किसी न्यूज़ चैनल या डिजिटल न्यूज़ पोर्टल पर आपको नई चीजें सीखने को मिल रही हैं, तो आपको फ्री में इंटर्नशिप जरूर करनी चाहिए।
जब आप फ्रेशर होते हैं, तो आपको केवल किताबों में टेलीविजन, रेडियो, या समाचार पत्रों के बारे में पढ़ाया जाता है। लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि मीडिया ही एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ सेलेब्स की तुलना में न्यूज़ चैनलों में होने वाले प्रैक्टिकल वर्क पूरी तरह से अलग होते हैं। इसलिए सबसे पहले जहाँ भी मौका मिले और सीखने को मिले, आपको वह अवसर जरूर ज्वाइन करना चाहिए।
नासा जैसे बड़े दिखने वाले न्यूज़ रूम में पहले 10 दिन आपको वहाँ एडजस्ट होने में लगेंगे। और अच्छी बात यह है कि पहले 10 दिनों में ही केवल ऑब्जर्वेशन के आधार पर आप लगभग 40% काम सीख जाएंगे।
शुरुआती इंटर्नशिप के दौरान भले ही आपको पैसे न मिलें, लेकिन दो या तीन महीने बाद आपकी योग्यता के अनुसार ज्यादातर न्यूज़ चैनल 10 से 15 हजार रुपये स्टाइपेंड के रूप में देना शुरू कर देते हैं।
अगर आप 6 महीने या उससे ज्यादा समय तक इंटर्नशिप कर रहे हैं, तो आपकी योग्यता के आधार पर आपको परमानेंट जॉब मिल सकती है।
एक जरूरी और महत्वपूर्ण जानकारी: यदि आपको किसी यूट्यूब चैनल से फ्री में इंटर्नशिप करने को कहा जा रहा है, तो सबसे पहले आपको उस यूट्यूब चैनल की ग्रोथ, व्यूअर्स और सब्सक्राइबर की संख्या देखनी चाहिए। अगर उसके सब्सक्राइबर्स मिलियन से कम हैं, तो आपको वहाँ अपना समय खराब करने से बचना चाहिए। उससे बेहतर यह होगा कि आप खुद का यूट्यूब चैनल बनाकर साप्ताहिक या वैकल्पिक दिनों में वीडियो जरूर बनाएं।