
आम आदमी एक राष्ट्रीय पार्टी है। दो राज्यों (दिल्ली और पंजाब) में दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार में है। इसके अलावा गुजरात के बीते चुनाव में 13% वोट शेयर के 4 सिटों पर आप काबिज है। वहीं गोवा में 7% वोट शेयर के साथ दो विधायक आप के हैं। अगर जनसंख्या के हिसाब से देखे तो चारों राज्यों की आबादी लगभग 13 से 14 करोड़ है और वोटरों की संख्या 8.50 करोड़ वही आम आदमी पार्टी को वोट देने वाले मतदाताओं की संख्या लगभग 2.15 करोड़ है जो की पूरे वोटर्स की एक चौथाई हिस्सा है। वहीं दिल्ली की जनसंख्या 3 करोड़ है अगर यूं कहे तो दिल्ली में की पूरी आबादी स्थाई या अस्थाई तौर पर मुख्यमंत्री केजरीवाल के जेल जाने से प्रभावित होती है। ये ठीक वैसा ही है जैसा घर का मुखिया ना रहे तो घर में कई तरह की समस्या आने लगती है और यहाँ तो पूरे 3 करोड़ लोगों के जीवन के निर्णय का सवाल है तो आप समझ सकते हैं यह कितनी बड़ी संवैधानिक संकट है।
सवाल यह उठता है कि क्या कोई निर्वाचित मुख्यमंत्री जो लाखों वोटो से जीत कर आया हो। उसे पद पर रहते हुए जेल भेजा जा सकता है? क्या उस मुख्यमंत्री को जेल भेजने से आम मतदाताओं के अधिकारों का हनन नहीं होगा ?
और अगर कोई मुख्यमंत्री लंबे समय तक जेल में रहता है तो क्या इससे जनता के लिए आई जन कल्याणकारी योजनाओं को सुचारू रुप से लागू न कर पाना। उनके समस्याओं को सरकार तक नहीं पहुंचाने का अभाव जिससे सही समय पर समस्याओं का निदान न होना पाना इत्यादि। क्या इन सभी समस्याओं के लिए आम जनता जिम्मेदार है या सिर्फ वो व्यक्ति जिसने लोकतांत्रिक तरीके से जनता ने चुना है।
आखिर कानून में क्या प्रावधान है किसी जनप्रतिनिधि (सदन के सदस्य) को गिरफ्तार करने की?
संसदीय विशेषाधिकार कानून के अनुच्छेद 105 के तहत संसद (लोकसभा राज्यसभा) के सदस्यों को विशेष छूट दी गई है वहीं अनुच्छेद 194 के तहत विधानसभा एवं विधान परिषद के सदस्यों को छूट दी गई है। लेकिन यह विशेषाधिकार पीएमएलए, यूएपीए, राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले इत्यादि केस में बाध्य नहीं होते हैं। इसके अंतर्गत सदन की कार्रवाई शुरू होने से 40 दिन पहले और सत्र खत्म होने के 40 दिनों बाद तक या सदन चलने के दौरान किसी सदस्य को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है लेकिन यह विशेषाधिकार सिर्फ सिविल मामले में ही बाध्य होते हैं।
पीएमएलए कानून क्या है और इस कानून के तहत जमानत मिलना कितना मुश्किल है?
पीएमएलए (पीएमएलए अर्थात धन शोधन निवारण अधिनियम) को 2003 में संसद से पास किया गया था। और 1 जुलाई 2005 को लागू किया गया। 2012 में इस कानून को संशोधन कर म्युचुअल फंड, बैंकिंग, अपराध की आय को छुपाने इत्यादि नियमों को जोड़ा गया। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने पीएमलए की धारा 45 को असंवैधानिक ठहरा दिया लेकिन सरकार ने एक साल बाद मार्च 2018 में धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो सख्त शर्तें लागू कर दी। पहला यह की कोर्ट को यह मानना हुआ कि आरोपी दोषी नहीं है और दूसरा यह की जमानत के दौरान आरोपी का अपराध करने की मंशा नहीं होगी। ऐसे संसोधनों के बाद पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलना मुश्किल हो गया। संसोधन से पहले इस कानून में 3 साल से ज्यादा की सजा होने पर ही जमानत की यह शर्तें लागू होती थी लेकिन 2018 में संशोधन के बाद सिर्फ अभियुक्त होने पर भी जमानत न मिलने की शर्तें रख दी गई।
पीएमलए कानून के तहत ईडी बिना वारंट घर की तलाशी, संपत्ति कुर्क और जरूरत पड़ने पर गिरफ्तारी करने का भी अधिकार होता है। इसी कानून के तहत झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आप के सांसद संजय सिंह, दिल्ली के पूर्व मंत्री सतेंद्र जैन, पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, बिआरएस नेता के कविता और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इसी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है।
आखिर ईडी की विश्वसनीयता पर सवाल क्यों खड़े हो रहे हैं ?
ईडी ने पहला पीएमएलए केस 2008 में दायर किया था ओपीएम इंटरनेशनल कंपनी के डायरेक्टर और बाकी कुछ लोगों पर लेकिन 15 साल बाद सारे आरोपी बरी हो गए हैं। इसलिए कहा जाता है कि कानून में प्रक्रिया ही दण्ड है। (Process is Punishment)
नियम के अनुसार किसी जांच एजेंसी ने किसी अभियुक्त को रिमांड पर लिया है तो 60 दिनों के अंदर चार्जसीट फाइल करनी होती है। किसी किसी केस में या अवधि अधिकतम 90 दिनों की हो सकती है। अगर इतने दिनों में चार्जसीट फाइल नहीं होती है तो अभियुक्त जमानत के लिए इनटाईटल हो जाता है। लेकिन इस केस में मुख्य चार सीट के अलावा पांच सप्लीमेंट्री चार सीट लग चुकी है इसलिए जमानत में रुकावट आ रही है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में तर्क रखते हुए कहा कि जो लोग सरकारी गवाह बन जा रहे हैं उन्हें जमानत मिल जा रही है। जैसे कि शरद चंद्र रेड्डी, शराब व्यापारी दिनेश अरोड़ा और राघव मंगुटा के जमानत पर ईडी ने विरोध भी नहीं दर्ज कराया। सरद रेड्डी वहीं है जिसने गिरफ्तारी के 5 दिनों बाद बिजेपी को 5 करोड़ चंदे दिए। राघव मंगुटा के पिता मगुंटा श्रीनिवासुलु रेड्डी को बीजेपी के सहयोगी पार्टी तेलुगुदेशम ने लोकसभा का टिकट दिया है।
आमतौर पर किसी सरकारी गवाह को एक ही केस में दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जाता है लेकिन ईडी ने शराब व्यापारी दिनेश अरोड़ा को इस मामले में दोबारा गिरफ्तार किया और फिर अरोड़ा ने आप सासंद संजय सिंह के खिलाफ बयान दिया जिससे संजय सिंह को जेल जाना पड़ा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज (2 अप्रैल, 2024) ही संजय सिंह को जमानत दे दी है।
ईडी के कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए गए फैसले:
20 मार्च, 2024 को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 20 झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी रहे प्रेम प्रकाश के मनी लांड्रिंग केस में सुनवाई करते हुए जस्टिस खन्ना ने कहा कि डिफ़ाल्ट बेल का मकसद ही ये है कि जब तक आप जांच पूरी ना कर लें, तब तक अरेस्ट ना करें। आप ये नहीं कह सकते कि ट्रायल तब तक शुरू नहीं होगा जब तक जांच पूरी नहीं होती। आप बार-बार सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर करते नहीं रह सकते और अभियुक्त बिना ट्रायल जेल में पड़ा रहे। पीएमएलए का सेक्शन 45 ज़मानत को नहीं रोक सकता क्योंकि ये अधिकार आर्टिकल 21 से आता है।
इससे पहले भी अप्रैल 2023 में जस्टिस कृष्णा मुरारी और सिटी रवि कुमार की बेंच ने कहा कि बिना जांच पूरे किए हुए अरेस्टेड व्यक्ति सिर्फ डिफॉल्ट बेल की अधिकार से वंचित रखने के लिए सप्लीमेंट्री चार्जसीट दाखिल नहीं कर सकती।
23 मार्च, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस उज्जल भुयन ने कहा ऐसे सही केस भी हो सकते है जहां ईडी की ज़रूरत है, लेकिन ऐसे भी केस हो सकते हैं जहां ईडी को गलत नीयत से लाया गया हो। कोई मेकेनिज़्म तैयार करना होगा, ख़ासकर वहां जहां राज्य और केंद्र में रूलिंग पार्टी अलग-अलग हैं। कुछ तो बेहतर करना होगा ताकि जहां सही केस बना है, वे सिर्फ इसलिए ना बच निकलें क्योंकि केंद्रीय जांच एजेंसी केस हैंडल कर रही है। लेकिन ऐसा भी ना हो कि गलत नीयत से कोई विच- हंटिंग की जा रही हो।