एक रेप की घटना को दूसरे रेप की घटनाओं से जस्टिफाई करना कितना सही ?

आज के समय हर एक बड़ी घटना को छूपाने के लिए नई घटनाओं को गढ़ा जाता है, आपके सामने एक दिवार सी खड़ी की जाती है और उस दिवार का रंग भी पहले से निर्धारित होता है कि वह काली होगी या उजली।

गुजरात, मध्यप्रदेश या उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले में कोई भी घटना हो फिर सत्ता में मौजूद पार्टीयां तुरंत उसे दूसरे राज्यों में हो रहे घटनाओं को बड़ा दिखाने की कोशिश में लग जाती है लेकिन सच तो ये है कि बल्तकार, मर्डर, भर्ष्टाचार इत्यादि घटनाओं की प्रवृत्ति वहीं होती है ऐसा नहीं है कि अगर दिल्ली में किसी का मर्डर हो तो वो मर जाएगा और यूपी में हो तो नहीं मरे या राज्स्थान में किसी महिला के साथ दुष्कर्म हो तो उसे शारीरिक व मानसिक पीड़ा होगी और वहीं मणिपुर में उसे आनंद की अनुभूति होगी? ऐसा तो बिल्कुल नहीं होगा ठीक उसी तरह आज के समय मणिपुर मे दो महिला के साथ हुए सामुहिक रेप को बंगाल और छत्तीसगढ़ में हो रहे रेप घटनाओं से जोड़ते हुए राजनीतिक पार्टीयां और कुछ चुनींदा पत्रकार एक क्रूर और शर्मशार रेप घटना को दूसरे शर्मशार घटनाओं से जस्टिफाई करने में लगी हुई है।

आज भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डि. वाई चन्द्रचूर ने कहा कि दूसरे राज्यों में हो रहे महिला हिंसा से मणिपुर में हुए शर्मशार घटना को सही नहीं ठहराया जा सकता।

अगर हिंसा को हिंसा से ही तौला जाना है तो फिर कानून की जरूरत क्या ? लोकतंत्र की जरूरत क्या ? हजारों करोड़ों रुपये चुनावों पर इसलिए खर्च किए जाए ताकि फिर वहीं सरकार आए और कहे कि हमारे पड़ोसी राज्यों में भी ऐसा ही हो रहा है!! 2014 में जनता ने इसलिए मोदी सरकार को लाया कि भर्षटचार कम हो सके, सरकार अच्छे पालिसी लेकर आए ना कि इसलिए कि भ्रष्टाचार कांग्रेस के समय में थी तो आज भी होगी, शिक्षा पर दो फिसद से ज्यादा पैसा उस समय खर्च नहीं हुए इसलिए आज भी नहीं होंगे।

अगर आप अपने आस पास भी हर गलती को सुधारने के बजाय दुसरों के गलती को हाईलाइट कर और खुद को उससे बेहतर मानना उस समाज और व्यक्ति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
~ मनीष कुमार

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