मणिपुर रेप को दूसरे राज्यों में महिलाओं के साथ हो रहे यौन शोषण से जस्टिफाई करना कितना सही?

कुछ सालों से एक नया नैरिटिव सेट करने की कोशिश की जा रही हैं, उदाहरण के तौर पर कहे तो अगर मौजूदा समय में कोई घटना होती है तो उस घटना का सही समाधान खोजने के बजाय हमें आज से 70 साल पहले का दृश्य दिखाने की कोशिश की जाती है।

कुछ ऐसा ही मणीपुर में हूए शर्मशार घटना को ढ़कने के लिए विपक्ष शाषित राज्यों जैसे बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं के साथ हो रहे अपराध से जोड़कर देखा जा रहा है। महिलाओं के साथ यौन शोषण जैसे घिनौना अपराध बंगाल में हो या मणिपुर में वो दोनों जगह गलत है लेकिन सवाल है कि एक ऐसी शर्मशार करने वाली घटना जब एक 20 साल की लड़की को नग्न कर पूरे गाँव में घुमाया गया और सामुहिक तौर पर रेप किए गए साथ में विरोध करने पर उसके भाई और पिता की हत्या कर दी गई, पूरे देश से लोग मणिपुर में हुए घटना में न्याय मांग रहे हैं, ब्रिटेन के संसद ने इस घटना की निंदा कि और कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की आलोचना की जा रही है और हम कारवाई करने की जगह हर बार की तरह इस बार भी कभी नेहरू तो कभी विपक्ष शाषित राज्यों का उदाहरण पेश करने में लगे हैं।

सवाल है कि मणिपुर कि रहने वाली 20 साल की उस लड़की को न्याय तब मिलेगा जब राजस्थान और दूसरे राज्यों में महिला अपराध कम होगा? फिर तो इस लोकतंत्र में चुनाव ही नहीं करवाने चाहिए क्योंकि हर राजनीतिक पार्टी अपने राज्यों में सिस्टम को सही करने के बजाय दूसरे पर आरोप लगाएगा।

सरकार इसलिए बदले जाते हैं ताकि पहले वाली सरकार ने जो गलतियां की वो मौजूदा सरकार ना करे। अगर पार्टियाँ हर दूसरे काम के लिए पुरानी सरकार को जिम्मेदार ठहराए तो समझिए कि मौजूदा सरकार अपने दायित्व का निर्वाहन करने में विफल हैं।

आज के समय ज्यादातर मामलों में राजनीतिक पार्टियाँ अपने पालिसी को सुधारने के बजाय विपक्ष शाषित राज्यों में हो रहे घटनाओं से जोड़कर बयान देने लगते हैं और वहीं आग में घी डालने का काम सोशल मीडिया पर पुराने पोस्ट/ इडिटेड विडियो/फेक न्यूज़ के प्रचार – प्रसार से होते हैं। इसमें सारे पार्टियाँ शामिल हैं चाहे वो बिजेपी हो, कांग्रेस हो या कोई और पार्टियाँ। बकायदा युवाओं का ब्रेन वाश करके उन्हें रोजगार के नाम पर राजनीतिक पार्टियों के आईटी सेल में भर्ती करवाया जाता हैं।

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