
महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही फैसला देने जा रहा है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने 16 मार्च को मामले पर फैसला सुरक्षित रखा था। इससे पहले कोर्ट ने 9 दिनों तक दोनों पक्षों और राज्यपाल कार्यालय के वकीलों को सुना। सुनवाई के दौरान उद्धव कैंप ने शिंदे की बगावत और उनकी सरकार के गठन को गैरकानूनी बताया। दूसरी तरफ शिंदे खेमे ने कहा कि विधायक दल में टूट के बाद राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का आदेश देकर सही किया था।
क्या है मामला?
2022 में शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों की बगावत के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जून और जुलाई, 2022 में दाखिल कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित थीं। अगस्त में यह मामला संविधान पीठ को सौंपा गया था। 5 जजों की संविधान पीठ ने शिंदे कैंप के विधायकों की अयोग्यता, सरकार बनाने के लिए शिंदे को मिले निमंत्रण, नए स्पीकर के चुनाव जैसे कई मामलों पर उद्धव गुट की तरफ से उठाए गए सवालों पर विचार किया।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इन पहलुओं पर विस्तार से दोनों पक्षों की दलीलों को सुना-
- क्या तत्कालीन डिप्टी स्पीकर इस वजह से शिंदे कैंप के विधायकों की अयोग्यता पर विचार करने में सक्षम नहीं थे कि उनके खिलाफ खुद ही पद से हटाने का प्रस्ताव लंबित था?
- क्या शिंदे कैंप के विधायक इसलिए भी अयोग्य हैं क्योंकि उन्होंने स्पीकर के चुनाव में पार्टी व्हिप के खिलाफ बीजेपी के उम्मीदवार को वोट दिया?
- पार्टी के चीफ व्हिप यानी मुख्य सचेतक की नियुक्ति कौन कर सकता है? शिवसेना के तत्कालीन आलाकमान की तरफ से नियुक्त व्हिप को शिंदे कैंप ने विधायक दल में अपने बहुमत के आधार पर हटा कर क्या सही किया?
- शिंदे कैंप के विधायकों की संख्या भले ही शिवसेना के विधायकों की कुल संख्या के 2 तिहाई से अधिक थी, लेकिन उन्हें दलबदल कानून के तहत किसी दूसरी पार्टी में विलय करना चाहिए था? वह दूसरी पार्टी के समर्थन से खुद सरकार नहीं बना सकते थे?
- क्या राज्यपाल ने एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का निमंत्रण देकर गलती की?
बदल चुकी है स्थिति
शिंदे की बगावत से लेकर अब तक महाराष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। इस वक्त बीजेपी के समर्थन से शिंदे की बहुमत वाली सरकार महाराष्ट्र में है। चुनाव आयोग भी फैसला दे चुका है कि शिंदे की शिवसेना ही असली शिवसेना है। एकनाथ शिंदे सरकार को तभी खतरा हो सकता है जब संविधान पीठ यह तय कर दे कि जिस समय शिंदे और उनके विधायकों ने सरकार बनाई, उस समय वह विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य थे। सुप्रीम कोर्ट अगर सिर्फ यह कहे कि राज्यपाल ने शिंदे को निमंत्रण देकर जल्दबाजी की, तब स्थिति नहीं बदलेगी। ऐसा इसलिए कि उस निमंत्रण के बाद के बाद सीएम बने शिंदे ने बहुमत साबित कर दिया था