1582 के बाद 1 जनवरी से शुरू हुआ नया साल:नई कसमों-वादों की वजह 2 हार्मोन, 90% कमिटमेंट दूसरे हफ्ते ही फेल होते हैं

हैप्पी न्यू ईयर…2023 के वेलकम के साथ ही न्यू ईयर रेजोल्यूशन का सिलसिला भी शुरू हो गया है। किसी को वजन कम करना है तो किसी ने स्मोकिंग, पान मसाला या गुटखा छोड़ने की कसम खाई है। कोई रोज सुबह जल्दी उठकर वॉक करने का खुद से वादा कर बैठा है तो किसी ने फास्ट फूड से दूर रहने का इरादा पक्का कर लिया है।

आखिर नया साल आते ही क्यों सुधरने का भूत सवार हो जाता है? क्या ये जोश पूरे साल इसी तरह बना रहा है? नहीं…। हफ्ते या महीने बीतने के बाद आमिर खान की फिल्म ‘गजनी’ की तरह खुद को सुधारने का जोश ठंडा होकर ‘शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस’ के हवाले हो जाता है।

1 जनवरी को 80% लोग खुद से वादा करते हैं, लेकिन 2 हफ्ते बीतने के बाद खुद से ही बेवफाई कर बैठते हैं। इसलिए 2023 का बेस्ट रेजोल्यूशन है कि हम खुद से कोई वादा ही न करें।

लेकिन लोग रेजोल्यूशन बनाते क्यों हैं और अगर बनाते हैं तो फिर तोड़ते क्यों हैं? न्यू ईयर रेजोल्यूशन के साथ ऐसा होता क्यों हैं? कभी सोचा है? तो आज ‘फुरसत का रविवार’ में इसके लिए चलते हैं हॉर्मोंस की दुनिया में…

डोपामाइन और सेरोटोनिन करवाता है वादा

जब भी कोई नई चीज शुरू होती है तो हम लोग जोश और उत्साह से भर जाते हैं। यह ऐसा वक्त होता है जब इंसान कुछ भी कर गुजरने की सोचता है। जब भी हम जोश, उमंग और खुशी महसूस करते हैं तो यह डोपामाइन हाॅर्मोन की वजह से होता है। यह हैप्पी हाॅर्मोन कहलाता है। जब यह एक्टिव होता है तो इंसान अपनी बॉडी को शेप में लाने के बारे में या वजन कम करने में सफलता हासिल करने के लिए एक्साइटेड रहता है।

वहीं, सेरोटोनिन इंसान की उदासी और डिप्रेशन दूर कर देता है। यानी अगर आपने न्यू ईयर की पार्टी की धूम के बीच रेजोल्यूशन रखा था, तब आपका डोपामाइन और सेरोटोनिन एक्टिव था।

ये तो रहा रेजोल्यूशन का साइंस, अब जरा इसके अतीत में झांकते हैं। लेकिन इससे पहले ग्राफिक्स के जरिए आपको बताते हैं कि कब से 1 जनवरी को नए साल की शुरुआत माना गया.

5 हजार साल पहले जिंदगी जीने के लिए किए जाते थे वादे

रेजोल्यूशन का चलन 5000 साल पुराना है। इतिहास में इसके सबूत मेसोपोटामिया के बेबिलोनियाई सभ्यता में मिले। खेती-किसानी के नए साल के मौके पर वहां 12 दिन का त्योहार मनाया जाता था। यह ठीक बिल्कुल वैसा है जैसे भारत में फसल के हिसाब से लोहड़ी, होली या बैसाखी जैसे पर्व मनाया जाता है।

इस मौके पर बेबीलोन शहर के लोग अपने राजा से समय पर कर्ज चुकाने, पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने और खेती से जुड़े औजारों को वापस करने का वादा करते थे।

वहीं, प्राचीन मिस्र में जब हर साल नील नदी में बाढ़ आती थी तो उसके बाद जमीन कृषि के लिए उपजाऊ बन जाती थी। इस साल को Wepet Renpet यानी नए साल की शुरुआत माना जाता। इस मौके पर जमकर जश्न होता। यह जश्न आज की न्यू ईयर की पार्टी की तरह होता था।

प्राचीन रोम में भी लोग नए साल पर भगवान से प्रार्थना करके खुद की बेहतरीन जिंदगी के लिए रेजोल्यूशन बनाते थे। चीन में रेजोल्यूशन लेने को गुड लक समझा जाता था। यानी पुराने जमाने में लोग रेजोल्यूशन जीवित रहने के लिए लेते थे।

रेजोल्यूशन के बदले मायनेयूरोप के मशहूर इतिहासकार और लेखक कालेब टेरी ने अपने लेख ‘द हिस्ट्री ऑफ न्यू ईयर रेजोल्यूशन एंड सेलिब्रेशंस’ में लिखा कि मॉडर्न रेजोल्यूशन समाज में आज के हिसाब से बनाए जाने लगे हैं। पुराने जमाने की तरह अब यह जरूरत के हिसाब से नहीं बल्कि पर्सनल मकसद के हिसाब से तय होते हैं।

यूरोप के मशहूर इतिहासकार और लेखक कालेब टेरी ने अपने लेख ‘द हिस्ट्री ऑफ न्यू ईयर रेजोल्यूशन एंड सेलिब्रेशंस’ में लिखा कि मॉडर्न रेजोल्यूशन समाज में आज के हिसाब से बनाए जाने लगे हैं। पुराने जमाने की तरह अब यह जरूरत के हिसाब से नहीं बल्कि पर्सनल मकसद के हिसाब से तय होते हैं।

शायद इसलिए अब लोगों के रेजोल्यूशन होते हैं- जिम जॉइन करके 5 किलो वजन कम करना, हफ्ते के 2 दिन कार्डियो एक्सरसाइज करना, स्मोकिंग, पान मसाला, गुटखा या शराब छोड़ना, रोज सुबह जल्दी उठना, खाने में जंक फूड और चीनी को बाहर करना और ना जाने क्या-क्या।

खुद से रोज करेंगे वादा तो होगा बदलाव

साइकोलॉजिस्ट्स मानते हैं कि अगर कोई वाकई में खुद से वादा करके अपने आपको सुधारना चाहता है तो उसे नए साल की जरूरत नहीं है। हर दिन नया है। हर दिन खुद से वादा कर उसके लिए मेहनत करें।

खुद को वही इंसान बदल सकता है जो उस बदलाव के काबिल है। रेजोल्यूशन को भी रीयल रखें। 1 महीने में आप 10-20 किलो वजन कम नहीं कर सकते।

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