
कई बीजेपी शासित प्रदेशों में ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने के लिए’ लगाए गए विज्ञापन.
इन विज्ञापनों में हुआ कुल ख़र्च – 18 करोड़ 3 लाख 89 हज़ार 252 रुपये.
गुजरात सरकार ने ख़र्च किए 2 करोड़ 10 लाख 26 हज़ार 410 रुपये.
उत्तराखंड सरकार ने ख़र्च किए 2 करोड़ 42 लाख 84 हज़ार 198 रुपये, वहीं कर्नाटक सरकार ने ख़र्च किए 2 करोड़ 19 रुपये.
हरियाणा सरकार ने ख़र्च किए 1 करोड़ 37 लाख 43 हज़ार 490 रुपये.
जानकारों का मानना है कि इन विज्ञापनों का उद्देश्य किसी राजनीतिक हस्ती की छवि को बढ़ावा देना है. साथ ही ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या ये जनता के पैसों की बर्बादी नहीं है?
गुजरात में एक और पांच दिसंबर को चुनाव हैं और आठ दिसंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे. वहीं दिल्ली में फ़िलहाल एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) के चुनाव होने वाले हैं.
दिल्ली में इस बार बीजेपी 15 साल तक एमसीडी में अपने शासन को बनाए रखने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही है, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) गुजरात के साथ-साथ एक बार फिर दिल्ली में एमसीडी की सीटों पर भी क़ब्ज़ा करने की तैयारी में है.
एमसीडी चुनाव से पहले बीजेपी ने दिल्ली में कई जगहों पर विज्ञापन लगाए हैं, जिनमें से एक पर लिखा है, “सेवा ही विचार, नहीं खोखले प्रचार”. यानी भाजपा का कहना है कि वो सेवा में विश्वास रखने वाली पार्टी है न कि खोखले प्रचार करने वाली.
लेकिन अगर कोरोना महामारी के दौरान और उसके बाद बीजेपी शासित कुछ राज्यों में प्रचार की बात करें तो जो तस्वीर सामने आती है वो इस दावे के उलट दिखती है.
बीबीसी गुजराती सेवा ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके पाया है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और कर्नाटक सहित भाजपा शासित राज्य सरकारों ने विभिन्न योजनाओं को लागू करने के लिए ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने के लिए’ कुल 18 करोड़ 3 लाख 89 हज़ार 252 रुपये ख़र्च किए.
ग़ौरतलब है कि सरकारी विज्ञापनों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से ‘किसी भी राजनीतिक शख़्सियत के महिमामंडन से बचने’ की बात कही गई है.
क़ानूनी विशेषज्ञ इसे ‘अजीबोग़रीब’ क़रार देते हैं और आश्चर्य जताते हैं कि राज्य सरकारें प्रधानमंत्री को ‘संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाने’ के लिए ‘धन्यवाद’ देती हैं.
बीजेपी की ओर से कहा गया है कि इन सभी विज्ञापनों के मुद्दे का पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है. जबकि विज्ञापन मामले में सभी भाजपा शासित राज्य सरकारों ने कोई भी जवाब देने से परहेज़ किया है.
विज्ञापनों मेंक्या था?
बीबीसी गुजराती सेवा द्वारा दायर आरटीआई (सूचना के अधिकार) आवेदन में प्राप्त दस्तावेज़ों और जवाब की जांच करने के बाद पता चला है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक की भाजपा शासित सरकारों ने कोरोना टीकाकरण को बढ़ावा देने, प्रधानमंत्री आवास योजना और ‘नल से जल’ योजना के लिए ‘धन्यवाद प्रधानमंत्री मोदी’ का विज्ञापन जारी किया था.
गुजरात, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक की राज्य सरकारों ने कोरोना महामारी के दौरान ‘सभी के लिए वैक्सीन, फ्री वैक्सीन थैंक्स मोदीजी’ विज्ञापन जारी करने के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च किए.
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, गुजरात सरकार ने क़रीब दो करोड़ 10 लाख रुपये, उत्तराखंड सरकार ने दो करोड़ 42 लाख रुपये, हरियाणा सरकार ने एक करोड़ 37 लाख रुपये और कर्नाटक सरकार ने दो करोड़ 19 लाख रुपये ख़र्च किए.
बीबीसी ने इस बारे में आरटीआई से जानकारी मांगी थी. बीबीसी ने आरटीआई के तहत आवेदन देकर पूछा था कि 21 जून 2021 से अलग-अलग मीडिया के जरिये सभी के लिए वैक्सीन, फ्री वैक्सीन थैंक्स मोदीजी’ विज्ञापन या प्रचार अभियान चलाया गया था. उस पर कितने पैसे खर्च किए थे?
बीबीसी ने इसी तरह के समान संदेशों को अलग-अलग भाषाओं के विज्ञापनों में जारी करने के लिए खर्च की गई रकम की भी जानकारी मांगी थी. इसके साथ ही इन विज्ञापनों और प्रचार अभियान के लिए मंजूर की गई स्क्रिप्ट और संदेशों की भी कॉपी मांगी थी.
ये जानकारियां गुजरात, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक सरकार से मांगी गई थी.
बीबीसी ने आरटीआई आवेदन के जरिये पूछा था कि इन विज्ञापनों और प्रचार अभियान के लिए होर्डिंग्स, बोर्ड और सार्वजनिक जगहों पर संदेश देने के माध्यमों पर कितना खर्च किया गया है.
दिल्ली क्षेत्र में ‘पूरी हुई आस, स्वच्छ नल जेल से बुझेगी हर घर की प्यास’, ‘जल जीवन मिशन’, ‘धन्यवाद मोदी जी’ और ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’, ‘सच हुआ सपना घर हुआ अपना’, टधन्यवाद मोदी जी’ जैसे विज्ञापन और प्रचार अभियान के तहत जनसंपर्क विभाग की ओर से चलाया गया था.
बीबीसी ने 1 मार्च 2022 से लेकर अभी तक इन अभियानों के तहत खर्च की गई रकम की जानकारी मांगी थी.
पिछले साल यह भी ख़बर आई थी कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों से ‘कोरोना वैक्सीन के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद’ देने के विज्ञापन देने को कह रही है.
न्यूइंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया था कि सभी को मुफ़्त टीके उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देने के लिए मीडिया में विज्ञापन चलाने को केंद्र सरकार द्वारा राज्य के अधिकारियों पर दबाव डाला जा रहा है.
बीबीसी गुजराती ने यह जानने के लिए आरटीआई दायर किया कि क्या कुछ ग़ैर-बीजेपी राज्यों में भी ऐसी कोई घोषणा की गई है.
याचिका के जवाब में दिल्ली और महाराष्ट्र (जिसमें जून 2021 में ग़ैर-बीजेपी सरकार थी) ने कहा, “इन राज्यों की सरकारों द्वारा ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई थी.”
इसके अलावा, मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में बताया कि उसने ‘नल से जल’ योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के विज्ञापन में ‘प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद’ देने के लिए 9,94,35,154 रुपये ख़र्च किए थे.
सरकारी विज्ञापन को लेकर क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कॉमन क़ॉज एंड सेंटर फ़ॉर पब्लिक द्वारा एक याचिका दायर की गई थी. इसमें सरकारी योजनाओं के विज्ञापन और प्रचार के लिए सरकार द्वारा सार्वजनिक पैसे के विवेकपूर्ण और उचित उपयोग के लिए निर्देश देने और इसकी निगरानी के लिए दिशानिर्देश देने की मांग की गई थी. कोर्ट ने इसके लिए एक कमेटी गठित की.
इस समिति द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सरकारी विज्ञापनों में राजनीतिक तटस्थता रखी जानी चाहिए. यह भी कहा गया है कि विज्ञापनों में किसी राजनेता का महिमामंडन करने से बचें.
सत्ता में पार्टी की सकारात्मक छवि पेश करने और विरोधी पार्टी की नकारात्मक छवि पेश करने के लिए विज्ञापनों के लिए सरकारी धन का उपयोग करना भी प्रतिबंधित है.
इसके अलावा, राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा उनके शासन के कुछ दिनों या वर्षों के पूरा होने के अवसर पर विज्ञापन जारी किए जाते हैं.
हालांकि, न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, ऐसे विज्ञापनों का उद्देश्य प्रचार नहीं होना चाहिए, बल्कि सरकारी कार्यों के परिणामों के बारे में जनता को सूचित करने का प्रयास होना चाहिए.
इन याचिकाओं के निस्तारण के क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी विज्ञापनों और प्रचार का उद्देश्य जनता को सरकार की योजनाओं और उसकी नीतियों के बारे में बताना होना चाहिए.