
अमेरिका आज तक किसी का सगा नहीं हुआ चाहे वो अमेरिका का 200 साल पुराना मित्र ही क्यों ना हो, साल 2016 में फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया से एक कंट्रेक्ट पर हस्ताक्षर किया जिसके तहत आस्ट्रेलिया फ्रांस से $66 बिलियन में 12 न्यूक्लियर परमाणु सबमरीन खरीदने वाला था लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अक्टूबर 2021 में अमेरिका के दबाव में आकर फ्रांस से समझौता तोड़ लिया। अब नए त्रीपक्षीय समझौते औकस के तहत आस्ट्रेलिया अमेरिका से परमाणु पनडुब्बी का आयात करेगा। यह तो हाल की घटना हो गई लेकिन इससे पहले भी इतिहास में देखें तो जब अमेरिका पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में आतंकवाद को खत्म करने के बजाय प्राकृतिक संसाधन का दोहन कर रहा था उस वक्त तक पाकिस्तान अमेरिका का दोस्त हुआ करता था लेकिन आज पाकिस्तान अमेरिका के जूती के सामान भी नहीं है। आज भी कई पूर्वी एशियाई देश (ताइवान, जापान, साउथ कोरिया, हांगकांग) अमेरिका का मोहरा बने हुए हैं, कहीं न कहीं इन सभी देशों को लगता है कि अगर कल के दिन चीन इनपर हमला करता है तो इनके समर्थन में अमेरिका आएगा और अमेरिका भी चीन का भय दिखाकर इन सभी देशों से आर्थिक – राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करता है लेकिन आज वास्तविकता आप सभी के सामने है। जिस तरह से यूक्रेन को झूठा भरोसा दिलाकर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्मी (रूस) के साथ युद्ध लड़ने अकेले को धकेल दिया।
और अब न समर्थन में अमेरिका आया और ना ही नाटों देश लेकिन युद्ध से पहले आप किसी भी अखबार, न्यूज़पेपर, न्यूज़चैनल का हेडलाइंस देख ले तो आपको लगेगा कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो नाटो और अमेरिका जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार है और यहां तक कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन भी युद्ध से पहले तक यूक्रेन को समर्थन देने का बात करते रहे, आज तो हालात यह हो गई है कि राष्ट्रपति जो वाईडेन खुद यूक्रेन के राष्ट्रपति को देश छोड़ भागने की सलाह दे रहे हैं।
1. अब यहां सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या पश्चिमी देश अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए सैन्य और आर्थिक रुप से कमजोर देशों को अपना मोहरा बना रहे हैं ?
2. क्या ऐसी घटना होने के बावजूद भी कोई देश अमेरिका पर भरोसा करेगा चाहे वो ताइवान हो, जापान हो, या हाल के दिनों में करीबी मित्र बताए जाने वाला भारत ही क्यों ना हो ?
आज युद्ध का पांचवा दिन है संयुक्त राष्ट्र के अनुसार करीब 1000 यूक्रेनी नागरिकों की जान इस युद्ध में जा चुकी है जिसमें 100 छोटे बच्चे भी शामिल है, यह आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है क्योंकि यूक्रेन ने 2500 से ज्यादा नागरिकों की मरने कि पुष्टि की है वहीं दूसरी ओर यूक्रेन के दावे के अनुसार रूस के 10 हजार से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं लेकिन रूस 500 -600 सैनिक मरने की बात कबूल करता है, बरहाल क्षति दोनों तरफ हुई है, चाहे रूस के सैनिक मारे गए हो, टैंकर, फाइटर प्लेन नष्ट हुए हो, तो वहीं यूक्रेन के अरबों की संपत्ति के साथ मानवीय क्षति हुई हो लेकिन इसमें गौर करने वाली बात है कि सबसे ज्यादा फायदा किसको हो रहा है।
रूस यूक्रेन युद्ध से फायदा ही फायदा
आप सभी जानकर हैरान हो जाएंगे कि दुनिया में सबसे ज्यादा आर्म्स बनाने वाले और बेचने वाले देश, अरबों की लागत से बनने वाले हथियार के उत्पादन करने से पहले करोड़ों रुपए इस जानकारी को जुटाने में खर्च कर दिए जाते हैं कि इस हथियार का उपयोग किस देश में होने वाला है या क्यों ना उस देश में ऐसी परिस्थितियां बना दी जाए कि लोग खुद हथियारों की मांग करने लगें। उदाहरण के लिए अफगानिस्तान में यूएसएसआर को बाहर निकालने के लिए अमेरिका ने विद्रोही गुट से भारी मात्रा में हथियार बेचें। यमन, सीरिया, लीबिया में भी कुछ हालात ऐसे ही रहे यहां तक कि भारत – पाकिस्तान में भी जैसी परिस्थितियां बना दी गई और जिसका फायदा पश्चिमी देश और अमेरिका ने खुब उठाया। 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमले की घोषणा की तब से लेकर अब तक अमेरिकन आर्म्स कंपनियां रायथन टेक्नोलॉजी जो मिसाइलें बनाती है, लॉकहीड मार्टिन जो f-35 फाइटर जेट का निर्माण करती है और नार्थरुप गुरुमैन में जो निरीक्षक ड्रोन का उत्पादन करती है इन सभी कंपनियों के शेयर में 10 -20% का उछाल देखा गया है (स्रोत: द गार्डियन)।
वहीं स्वीडन स्थित रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक पिछले 5 सालों में अमेरिका के आर्म्स निर्यात में 37% की वृद्धि देखी गई है..अगर पूरे वाक्या को समझे तो एक बात स्पष्ट है कि अमेरिका और पश्चिमी देश दुनिया में हो रहे ज्यादातर युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा नहीं बन रहे हैं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से अपने मुनाफे को साधनें में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
क्या जेलेंस्की अमेरिका के बहकावे में आकर या सच में अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्ध लड़ रहे हैं ?
अपनी मातृभूमि की रक्षा करना गर्व की बात है इसमें अगर सच्चा देशभक्त जान भी गंवा दिए तो कोई बात नहीं है लेकिन किसी बाहरी दबाव या लालच में आकर कोई देश किसी संगठन का सदस्य बनने का निर्णय लेता है और इस निर्णय के कारण 25 लाख से ज्यादा लोग देश छोड़ शरणार्थी बन जाते हैं, 1000 लोगों की जान चली जाती है, कई बेगुनाह बच्चे मारे जाते हैं तो यह निर्णय किस काम का जिसमें हम अपने देश को टूटने से भी नहीं रोक पाए। अब जब ऐसी परिस्थिति हो गई है जिसमें यूक्रेन अपना 60% से ज्यादा हिस्सा रूस से हार चुका है या वो अब युक्रेन के कंट्रोल से बाहर है। इस समय यूक्रेन के राष्ट्रपति इस बात का जिक्र करते हैं कि हम नाटो का सदस्य नहीं बनना चाहते हैं अगर देखा जाए तो कहीं न कहीं यह यूक्रेन की मजबूरी है क्योंकि यूक्रेन के कई बार आग्रह करने के बावजूद भी ना नाटो संगठन और ना ही यूरोपियन यूनियन युक्रेन को अपना हिस्सा बनाना चाहते हैं।
यहां तक कि यूरोपियन यूनियन के संसद में वोटिंग के जरिए भी यूक्रेन को समर्थन दी गई लेकिन इस संगठन का हिस्सा नहीं बनाया गया, इस घटना को देखकर मुझे एक कहावत याद आ रही है “दुविधा में दोनों गए न माया मिली न राम”
भले ही जेलेंस्की अमेरिका के बातों में आकर दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हो गए हो लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि जेलेंस्की एक बहादुर सिपाही हैं वह अपने सैनिकों की हौसला अफजाई के लिए खुद मैदानी जंग में उतर गए हैं भले ही युद्ध से पहले उनके बारे में जो भी अनुमान लगाया जा रहा हो, लेकिन जेलेंस्की आज एक सच्चे युक्रेनी के लिए हीरो है जिस तरीके से अमेरिका खुद स्पेशल सुरक्षा के तहत जेलेंस्की को देश से बाहर निकालने का ऑफर दे चुका है लेकिन जेलेंस्की 60% से ज्यादा क्षेत्र हारने के बावजूद अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए भी डटे हुए हैं.. सलाम है जेलेंस्की आपको, रूस हाथी है तो आप चिट्टी के समान फिर भी आपने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
भले ही मुनाफाखोर दोस्त के कारण आप युद्ध हार जाएं लेकिन आपके हौसलें ने हमारे दिल जीत ली, आपको इतिहास में याद रखा जाएगा वलोडिमिर ज़ेलेंस्की।