
दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाला तथाकथित, धर्मनिरपेक्ष और मानव अधिकारों का पैरोकार, सही और गलत का फैसला करने वाला एक राष्ट्र जिसका नाम है अमेरिका। ऐसे तो दुनिया के अधिकांश देश का जनाधार मुनाफे पर ही टिकी है लेकिन अमेरिका खुद के मुनाफे के लिए किसी भी हद तक जा सकता है चाहे दुनिया रहे या नहीं रहे, मैं सुपर पावर रहूंगा ऐसा अमेरिका सोचता है।
मेरे द्वारा कही गए सारे बातों का प्रमाण कहीं न कहीं इतिहास और वर्तमान के संदर्भों से मेल खाता है.अमेरिका लोकतंत्र को बचाने और आतंकवाद को खत्म करने के लिए 2001 ईं में अफगानिस्तान में कदम रखता है और आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर लगभग $3 ट्रिलियन खर्च भी करता है लेकिन आतंकवाद को खत्म करने के बजाय उसका मुख्य केंद्र अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों पर रहता है। सीएनबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका जाखर प्रांत में सोने, कापर, नेचुरल गैस, अयस्क इत्यादि खनिज पदार्थों के खदानों में खनन कर रहा था जब अफगानी विद्रोही अमेरिकी सैनिक को ज्यादा नुकसान पहुंचाने लगे तो अमेरिका को भागना पड़ा।
अब धर्मनिरपेक्ष की बात करें तो जिस तरह से 9/11 घटना के बाद अमेरिका के सड़कों पर चल रहे हर दाढ़ी वाले और टोपी वाले को शक के आधार पर गिरफ्तार किया गया फिर उसके साथ जो बर्बरता की गई पूरी दुनिया ने देखा।
अगर हम मानव अधिकारों की बात करें तो अमेरिका खुद के नफे – नुकसान को देखते हुए इस पैंतरे को चलता है जब अमेरिका ने हजारों आम नागरिकों, बच्चों को अफगानिस्तान, इराक, सिरिया में मौत के मुंह में धकेल दिया तो उसे मानव अधिकारों की याद नहीं आई।
आज के संदर्भ को भी देखे तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है जब अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश अपने विस्तारवादी सोच से अग्रसर यूक्रेन को नाटो का हिस्सा बनाना चाहते हैं जिससे कि रशिया चारों ओर से घिरता दिख रहा है और रुस के सिमा से सटटे लतविया, इस्टोनिया, फिनलैंड, पोलैंड ये देश नाटो के मेंबर है या नाटों के पक्ष में अपना मत रखते हैं इसलिए रशिया को डर है कहीं अगर यूक्रेन नाटो का हिस्सा बन जाता है तो फिर रूस के व्यापार मार्ग जो कि ब्लैक सी से होकर गुजरती है, वहाँ से व्यपार के रास्ते बंद होने का खतरा बना रहेगा। दूसरा पहलू यह भी है कि अगर भविष्य में नाटो देश चारों ओर से हमला कर देता है तो फिर रूस का अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है। यूक्रेन कहीं नाटो का पार्टनर न बन जाए इसलिए रशिया ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है खबर के मुताबिक अब तक रुस के 4000 से ज्यादा सैनिक शहीद हो चुके हैं उसके बावजूद भी रशिया किसी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं है।
नाटो क्या है और नाटो की स्थापना क्यों की गई थी?
नाटो एक अंतरराष्ट्रीय सैन्य संगठन है इस संगठन में एक देश – दूसरे देश को सैन्य साधनों की मदद से स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देता है इसकी स्थापना सन् 1949 ईस्वी में हुई थी इसके बनने का मुख्य कारण था यूरोप में सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को रोकना, सोवियत एक समाजवादी गणतंत्र का संघ था सन् 1949 से 1991 तक सोवियत और नाटो के बीच शीतयुद्ध चली। अगस्त 1991 में सोवियत संघ 15 देशों में टूट जाती है सोवियत टूटने के कई कारण है आर्थिक रूप से कमजोर होना, आपसी मतभेद और एशिया में अपना वर्चस्व खोना इत्यादि।
रसिया क्यों नहीं चाहता यूक्रेन नाटो का हिस्सा बने?
जिससे कि रसिया खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है अगर इसको और आसान भाषा में समझे तो रशिया सिर्फ अनुमान के आसरे ही यूक्रेन पर हमला कर चुका है, रशिया नें जैसा सोचा था दो-तीन दिनों के अंदर हम यूक्रेन पर कब्जा कर लेंगे वैसा बिलकुल होते नहीं दिख रहा है।
अमेरिका और नाटो सदस्यों की सोची-समझी रणनीति…
यूक्रेन और रशिया की बिच हो रही जंग का जिम्मेदार अमेरिका और नाटो देस ही है.सोवियत संघ का प्रभाव कम करने के लिए बनी नाटो जब 1991 में सोवियत 15 देशों में टूटा उसके बाद से आज तक नाटो सोवियत से टूटे एक – एक देश को अपने में मिलाने की जुगाड़ में लगा है और ऐसा भी नहीं कि रशिया पहली बार नाटो में जुड़ने जा रहे हैं या प्रो नाटो देश पर आक्रमण किया हो इससे पहले भी 2008 में जब जोर्जिया पूरी प्लानिंग के साथ नाटो का मेंबर बनने की कगार पर था उस वक्त भी रूसी आर्मी ने जॉर्जिया पर हमला कर दो राज्य दक्षिण ओस्टिया और अब्खाजिया पर अपना कब्जा जमा लिया, जिसके कारण जॉर्जिया नाटों में जुड़ने से इंकार कर दिया.. वर्ष 2013 में जब यूक्रेन यूरोपियन यूनियन का हिस्सा बनने की तैयारी कर रहा था लेकिन उस वक्त के रूस ने दबाव ही नहीं बल्कि $15 मिलियन आर्थिक मदद पहुंचाने का भी भरोसा दिया जिसके कारण उस वक्त के यूक्रेनी राष्ट्रपति विकटर यानूकोविच ने यूरोपियन यूनियन में जुड़ने से मना कर दिया.. फिर यूक्रेन के सड़कों पर जगह – जगह राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे, हालात को देखते हुए राष्ट्रपति यानूकोविच देश छोड़ रुस भाग गए..
अस्थाई सरकार को देखते हुए रूस ने फायदा उठाया और फिर यूक्रेन पर हमला कर क्रीमिया क्षेत्र को अपने कब्जे में कर लिया जिसके कारण जी 8 सबमित से रुस को बाहर कर दिया गया, तब से लेकर अब तक के ब्लादीमरी पुतिन अप्रत्यक्ष रूप से सोवियत यूनियन से टूटे देशों को एक साथ जोड़ने की बात कहते आए हैं।
आज के हालात
कहीं ना कहीं पुतिन ने 3 महीने पहले (दिसंबर 2021) को ही जंग की चेतावनी दे दी थी, जब यूरो हॉकी टूर्नामेंट के दौरान रशियन खिलाड़ी यूएसएसआर का जर्सी पहने हुए थे और बीबीसी में छपी रिपोर्ट के अनुसार पुतिन ने नाटों से अपने संबंध सीमित रखें अगर नाटों यूक्रेन के साथ संबंध बढ़ाया तो रसिया यूक्रेन पर हमला भी कर देगा।
अब ठीक ऐसा ही देखने को मिला, 21 फरवरी 2022 को रशिया यूक्रेन के 2 प्रांतों दोनस्तेक और लुहांस्क को मान्यता दे दी, अगले 3 दिनों तक रशियन आर्मी लुहांस्क और दोनस्तेक के चप्पे-चप्पे में अपना कंट्रोल ले लेती है. अंततः रशिया 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर युद्ध की घोषणा कर देता है, युद्ध पिछले 6 दिनों से चल रही है, रशियन आर्मी को यूक्रेनिया आर्मी से अच्छी टक्कर मिल रही है. रशिया को अनुमान नहीं था कि यूक्रेनीयन आर्मी इतने ज्यादा देर तक टिक पाएंगे. इस जंग में रशिया को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, 4000 से ज्यादा सैनिक, 200 से ज्यादा टैंक बर्बाद हो चुके हैं. रशिया युद्ध को जल्द समाप्त करने के लिए खुलकर न्यूक्लियर अटैक की धमकी दे रहा है. इसके बाद यूनाइटेड नेशन ने भी न्यूक्लियर से संबंधित तीन बैठकें की है।
अमेरिका और नाटो की भूमिका…
इतिहास में आप कभी भी देख ले तो अमेरिका कभी किसी का सगा नहीं हुआ, युद्ध से पहले अमेरिका और पूरा नाटो, यूरोप यूरोपीय देश इस बात का रट लगाए थे कि अगर रशिया यूक्रेन पर हमला करता है तो हमारी मिसाइलें, एयरक्राफ्ट, युद्धपोत पूरी तरह तैयार है अमेरिका और नाटो की भूमिका है, हम यूक्रेन को पूरी तरह मदद करेंगे.. वैश्विक मीडिया 24/7 विश्व युद्ध 3 की न्यूज़ स्टोरी दिखा रहा था एक तरफ रशियन सेना और दूसरी तरफ नाटो अमेरिकन सैनिकों वाला ग्राफिक्स के जरिए दिखाने की कोशिश की जा रही थी लेकिन जैसे ही रशिया ने युद्ध की घोषणा की यूरोपीयन यूनियन, नाटो और अमेरिका आर्थिक प्रतिबंध की बात करने लगे, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा कि हमें युद्ध में अकेला छोड़ दिया गया, अमेरिका उस गिरगिट की तरह है जो कब अपने बातों से पलट जाए इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, हाँ अमेरिका अप्रत्यक्ष रूप से कुछ हथियार और पैसे उनको मदद के तौर पर पेश जरूर किया है। लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल है कि अगर उस बंदूक को चलाने वाले हाथ ही नहीं रहेंगे तो फिर क्या होगा उस बंदूक का, वैसे अब तक रशियन सेना यूक्रेन की राजधानी कीव में पहुंच चुकी है।
यूक्रेन रशिया युद्ध के कारण दुनिया के आर्थिक – राजनीतिक हालात पर असर होंगे..
रूस दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा गेहूं और तेल का उत्पादक है साथ में यूक्रेन भी दुनिया भर में 16% गेहूं का निर्यात करता है दोनों देशों को मिला दे तो 25 से 30% गेहूं का निर्यात दुनिया भर में इन्हीं दो देशों के द्वारा होता है.अभी पूरी दुनिया में तेल के दाम $100/ बैरल के पार पहुंच गए हैं, ऐसा 8 साल बाद देखा गया है. युद्ध की वजह से ब्लैक सी में आवाजाही ठप हो गई है जिसके कारण गेहूं की भी कमी देखी जा रही है।
अगर हम राजनीतिक अस्थिरता की बात करें तो बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक चीन, यूक्रेन – रसिया के युद्ध के फायदे उठाकर ताइवान पर हमला कर सकता है क्योंकि अब यह बात साफ हो गई कि ताईवान के मदद को अमेरिका खुद अपनी सैनिक या युद्धपोत भेजने वाला नहीं है, जैसा कि अमेरिका युक्रेन के साथ किया है. इसलिए बताया जा रहा है कि यह चाईना के लिए एक अवसर से कम नहीं है।
भले ही अमेरिका या नाटों ने यूक्रेन को युद्ध में अकेला छोड़ दिया हो लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की खुद मैदान-ए-जंग में अपनी सेना को लीड कर रहे हैं, यूक्रेनीयन राष्ट्रपति के अपील पर आम लोग भी बढ़-चढ़कर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए आगे बढ़ रहे हैं, रशियन हमला के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाईडन ने जेलेंस्की को फोन कर कहा कि आप देश छोड़ दे लेकिन राष्ट्रपति जेलेंस्की ने देश छोड़ तो दूर उन्होंने खुद दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए युद्ध मैदान में उतर गए।
जेलेंस्की भले ही आप युद्ध हार जाए लेकिन आपने अपनी बहादुरी का मिसाल देते हुए पूरी दुनिया का दिल जीत लिया है।
Very knowledge full this article keep it up
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