आखिर कब तक इस वीआईपी कल्चर के कारण लोगों के अधिकारों का हनन होगा?

पिछले दिनों 25 जून से 28 जून के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जन अभिनंदन समारोह में हिस्सा लेने के लिए कानपुर पहुंचे, राष्ट्रपति के कानपुर पहुंचने से पहले शहर के सभी ट्रैफिक को 2 घंटे तक रोक दिया गया। ट्रैफिक रोके जाने से एक महिला (वंदना मिश्रा) जिसकी हालत बहुत ही गंभीर बनी हुई थी अस्पताल नहीं पहुंचने से उसकी मौत हो गई, उसके परिजन पुलिस वाले महिला को अस्पताल ले जाने के लिए पुलिस के सामने हाथ -पैर जोड़ते रहे लेकिन पुलिस वाले ने एक नहीं सुनीं, मृतक के परिजन के मुताबिक सारे पुलिस वाले एक ही बात बोल रहे थे मुझे ऊपर से आर्डर है हम नहीं जाने देंगे, अस्पताल के डॉक्टर का कहना था कि महिला थोड़ी देर और पहले पहुंच जाती तो उसकी जान बचाई जा सकती थी आखिर यह कैसा कानून है, जिसमें नियम जनता के लिए नहीं बल्कि जनता नियम के लिए बनी हो ? मीडिया में खबर फैलने के बाद तीन कॉन्स्टेबल और एक सब इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया और कानपुर के कमिश्नर के द्वारा ट्विटर पर एक पोस्ट कर खेद प्रकट करते हुए माफी मांगी गई, क्या हमारा सिस्टम इतना संवेदनशील नहीं है कि परिवार के घर जाकर उसे संवेदना दे सके, राष्ट्रपति ने भी ट्विटर के चिड़िया के जरिए घटना पर दुख व्यक्त किया। राष्ट्रपति अपने बचपन के मित्र के घर जाकर उनके शादी की वर्षगांठ पे केक खाना नहीं भुले जो पहले से राष्ट्रपति के शिड्यूल में नहीं था लेकिन उस मृत महिला के परिजनों से मिलना उचित नहीं समझे, खैर मिलते कैसे हम तो प्रजा जो ठहरे।

अब सवाल उठता है कि उस महिला की मौत का जिम्मेदार कौन है? वो ट्रैफिक पुलिसकर्मी, सिस्टम, सरकार या स्वयं राष्ट्रपति। पहले आपको यह समझना होगा कि यहां बात सिर्फ एक महिला की नहीं है। भारत में हर रोज ऐसे हजारों वीआईपी लोगों के लिए ट्रैफिक रोकी जाती है, और ना जाने कितने आम लोगों की जान इस बदइंतजामी की वजह से जाती हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के रैली को देखते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर में 5 घंटे तक ट्रैफिक को रोका गया जिसमें एक महिला और एक बच्चे की मौत अस्पताल नहीं पहुंचने की वजह से हो गयी, और ऐसे कई उदाहरण मौजूद है।

अब सवाल उठता है कि क्या वाकई में उस पुलिस कॉन्स्टेबल की गलती थी जिसे महिला की मौत में जिम्मेदार मानकर सस्पेंड कर दिया गया, अगर वह आदेश का पालन नहीं करता फिर भी सस्पेंड होता। फिर बात वहीं पर आकर रुक जाती हैं, गलती किसी की भी हो सस्पेंड एक छोटे दर्जे का सिपाही ही होता। ज्यादातर मामले में सिस्टम अपनी गलती को छुपाने के लिए छोटे दर्जे के अधिकारी को सस्पेंड कर खुद को निर्दोष साबित करती रही है। यह सवाल सिर्फ एक महिला की मौत का नहीं है, ऐसे कई लोग हैं जो हर रोज किसी न किसी वीआईपी कल्चर के कारण अपने अधिकारों का हनन होते देखते हैं। ट्रैफिक नियम हो, अस्पतालों में डॉक्टरों के लाइन हो, कॉलेज में एडमिशन दिलाने के मामले हो, बैंक में लोन लेने के लिए हो या किसी अन्य सरकारी या प्राइवेट दफ्तर में कोई भी काम हो सारे में वीआईपी कल्चर को ज्यादा तरजीह दी जाती है। कोविड की दूसरी लहर इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है, जहां हजारों लोग ऑक्सीजन की कमी और बेड ना मिलने से मर रहे थे वहीं दूसरी ओर वीआईपी कल्चर वालों के एक फोन पे बड़े अस्पताल में दाखिला मिल जाता था सवाल उठता है कि ऐसा सिस्टम ही क्यों बनाया गया जिसमें वीआईपी कल्चर के लोगों के लिए अलग ट्रैफिक नियम, अलग चिकित्सा की सुविधा, अलग से एडमिशन की सुविधा इत्यादि यह सारी सुविधाएं के लिए कोई नियम नहीं है सिर्फ नाम ही काफी है वीआईपी कल्चर,  कुछ साल पहले लाल बत्ती को हटाकर कहा गया इससे वीआईपी कल्चर को खत्म किया जा सकेगा, लेकिन सिर्फ लालबत्ती हटाने से एक फायदा ही दिखता है, वो है उस छोटी सी बत्ती से खर्च होने वाली ऊर्जा को बचाना, अब लाल बत्ती के जगह वीआईपी लोग स्टिकर और नेमप्लेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।

राष्ट्रपति के कानपुर में दिए गए चर्चित बयान
मैं आपसब पाठकों को बता दूं भारत में ऐसा कोई स्पेशल कानून नहीं है जिसके तहत किसी भी नागरिक को टैक्स में छुट मिल सके, आयकर अधिनियम 1995 : यह कानून कहता है जब तक कोई स्पेशल कानून नहीं बन जाए जिसमें यह निर्देशित हो कि भारत के कुछ खास नागरिक को टैक्स में छुट मिलेगी कि नहीं, तब तक सभी नागरिक को आयकर अधिनियम 1995 के तहत टैक्स देना होगा।
दूसरी कथन: राष्ट्रपति के द्वारा कही गयी दूसरी कथन तथ्यात्मक रुप से गलत है। क्योंकि आयकर अधिनियम 1995 के तहत 15  लाख/ साल आय वाले व्यक्ति को अपने आय का 30% टैक्स देना होगा, इसके अनुसार राष्ट्रपति के आय पर  1.47 लाख/माह टैक्स लगता है। अगर राष्ट्रपति ने कोई निवेश या विमा पॉलिसी भी करा रखा है, फिर भी राष्ट्रपति का टैक्स 1.50 लाख/माह से ज्यादा नहीं हो सकता है इसलिए मैं इस बात कि पुष्टि कर सकता हूं कि राष्ट्रपति के द्वारा दिया गयी दूसरी कथन तथ्यात्मक रुप से गलत है। मेरा आप सभी पाठकों से गुजारिश है आप किसी भी खबर को अच्छे से जांच – परख ले उसके बाद ही उस खबर पे विश्वास करे।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s