
कोई बताएगा ज़रा इस बर्बादी का जिम्मेदार कौन हैं?
आज के समय दुनिया में सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज भारत में पाए जा रहे हैं पिछले साल मई महीने में भारत में कुल मरीजों की संख्या 1 लाख 65 हजार थी आज दुनिया में भारत 2 करोड़ 30 लाख केस के साथ दूसरे स्थान पर है, स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना वायरस की पहली लहर में मृत्यु दर 0.01% थी आज 1.1% हो गई है 5 लोगों में 2 लोग कोविड-19 पाजिटिव पाए जा रहे हैं, कोरोना संक्रमण बढ़ने के पीछे कई कारण है लोगों की लापरवाही (मास्क न पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग न बनाना) दूसरी बड़ी कारण है महामारी के दौड़ में 7 राज्यों में चुनाव करवाना और भारत में चुनाव का मतलब एक बड़ा त्यौहार जहाँ लाखों की संख्या में लोगों की उपस्थिति, इतिहास इस बात को कभी नहीं भूलेगी कि दुनिया कोरोनावायरस से जंग लड़ रही थी और भारत में राजनीतिक पार्टियां लाशों पर रोटीया सेक रही थी लाखों की संख्या में कोरोनावायरस से लोगों की जान जा रही है आखिर इसमें किसकी गलती है सिर्फ आम आदमी की, सरकार की, सिस्टम की मीडिया की, न्याय पालिका की या देश के महामहिम प्रधानमंत्री की… आइए सभी की भूमिका को समझने की कोशिश करते हैं मैं यह मानने में बिल्कुल संकोच नहीं करता कि लोगों ने गलतियां नहीं की लेकिन इन्हें उकसाने वाले कौन हैं? आम लोग हो या बड़े राजनेता सभी ने कोरोना को हल्के में लिया, जब बड़े से बड़े संवैधानिक पद पर बैठे लोग कहते हैं कोरोनावायरस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो फिर क्या उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कोरोना खुले में नहीं फैलता है फिर तो दुकान, सड़क सब्जी मंडी को बंद करने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि सारे खुले में होते हैं हद तो तब हो गई जब इनके सपोर्ट में टि्वटर पर हजारों ट्वीट होने लगे..
मानवीय त्रासदी ऐसी है कि कब्रिस्तान और श्मशान घाट में एक साथ तीन से चार लाशों का अंतिम संस्कार हो रहा है वो भी अंतिम संस्कार करने के लिए अपने बारी का इंतजार करना पड़ रहा है, समस्तीपुर के सदर अस्पताल में कोविड शव के अंतिम संस्कार के ₹5000 मांगे गये परिजन ₹2000 देने को तैयार थे लेकिन अस्पताल कर्मी ने ₹2000 लेने से साफ इनकार कर दिया “लोगों के हालात मजबूरी तक नहीं समझते यहां लोग आपदा तक को अवसर बना लेते हैं कुछ लालची लोग” इससे हटके कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मदद को आगे आ रहे हैं ट्विटर पर बहुत सारे पत्रकार और गैर सरकारी संस्था भी बढ़-चढ़कर लोगों को मदद पहुंचा रहे हैं लेकिन यहां भी कुछ गिद्ध और लालची लोग अपने फायदे को साधने से नहीं चूक रहे हैं लाचार जरूरतमंद मरीजों का मोबाइल नंबर हासिल कर उन्हें लाखों में ऑक्सीजन और रेमडेसेवियर बेच रहे हैं.. अब सवाल उठता है कि सरकार और सिस्टम क्या कर रही है सरकार पहली कोरोना वेब तो सख्त कदम उठाई लेकिन जैसे-जैसे कोरोना की रफ्तार थोड़ी धीमी हुई सरकार जैसे बंद गुफा में चली गई बिहार में चुनाव हुए उसके बाद भी संक्रमण की रफ्तार बढ़ी थी, सरकार के पास पर्याप्त समय थे कि वो स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर सके, लेकिन सरकार ने इसे नजरअंदाज किया कोरोना के दूसरे लहर की शुरुआत फरवरी माह से ही हो गई थी मार्च-अप्रैल में कोरोनावायरस ने विकराल रूप धारण कर लिया इसी बीच 6 राज्यों में चुनाव हो रहे थे लाखों की संख्या में लोगों की भीड़ इकट्ठा हो रही थी ना मास्क, ना सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखा गया, बड़े-बड़े राजनेता ममता बनर्जी हो, अमित शाह हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो इत्यादि सभी लोग बड़ी – बड़ी रैलियों को संबोधित कर रहे थे जैसे लग रहा था कोरोना चुनावी राज्यों में है ही नहीं कोई गाइडलाइन फॉलो नहीं किया जा रहा था
अवसरवादी लोग
बहुत सारे लोगों ने इस आपदा को अपने महत्वकांक्षी स्वार्थ के हितों को साधने में इस्तेमाल किया, बड़े – बड़े कॉर्पोरेट हाउस हो या छोटे व्यापारी या कुछ स्वार्थी लोग | दवा की कंपनी हो या वैक्सीन की सभी अपने अनुसार कीमत तय कर रही है, भारत में दो प्रकार की वैक्सीन बन रही है “कोवैक्सीन” और “कोविशील्ड” दोनों की कीमत सभी राज्यों में अलग-अलग है कहीं ₹600 मिल रही है तो कहीं ₹1200 में तो कहीं ₹1800 रुपए में, आरटीपीसीआर (RTPCR) टेस्ट ही देख लीजिए दिल्ली में ₹800 तो केरल में 1600 रुपए चार्ज बिहार में ₹800 से ₹1500 और कहीं तो टेस्ट ना होने के अभाव में लोग सीटी स्कैन के ₹3000 दे रहे हैं दवा दुकानदार रेमडेसीविर, ऑक्सीजन, फ्लो मीटर इत्यादि मेडिकल जरूरी समानो को 5 – 6 गुना ज्यादा कीमतों में बेच रहे हैं, वास्तविक कीमत ऑक्सीजन की ₹500 से ₹600 बिक रहे 5 हजार से ₹10 हजार तक, वास्तविक कीमत रेमडेशवीयर की ₹2900 बिक रहे हैं ₹5000 से ₹7000 में, वास्तविक कीमत ऑक्सीजन फ्लो मीटर की ₹900 बिक रहे हैं 4000 से ₹7000 में, दिल्ली हाईकोर्ट ने तो ऐसे लोगों को फांसी पे चढ़ा देने का फैसला सुना दिया लेकिन फांसी किसे दी जाए उस एक इंसान को जो सिर्फ एक मोहरा है दोषी तो सारे सिस्टम है जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका भी आते हैं, हाल फिलहाल की एक घटना है गुरुग्राम से लुधियाना तक एक एंबुलेंस वाले ने 1.2 लख रुपए चार्ज किया फिर मानवता कहां है ये लोग उन गिद्ध से भी बदतर हैं गिद्ध भी मृद लाशों को खाता है ये लोग तो जिंदा लोगों को भी नहीं छोड़ रहे हैं
सरकार इन गलतियों को करने से बच सकती थी
45 देशों से करीब 6000 से ज्यादा ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, 4000 ऑक्सीजन सिलेंडर, 1 लाख मास्क, 1.5 लाख रेमडेशवीयर दवा भारत को मदद किए गए, भारत में पहली दवा/आक्सीजन सिलेंडर कि खेप 25 अप्रैल को आई लेकिन बांटने की प्रक्रिया (Standard operating procedure) बनाने में 13 दिनों का समय लगा इसके बीच हजारों की संख्या में लोगों की जान आक्सीजन, दवा,आक्सीजन कन्सट्रेटर ना होने कि वजह से गयी, क्या इसका जिम्मेदार कौन है? क्या माँफ कर पाएगी वो माँ जिसके बच्चे ने अभी तक जमीन पे पैर भी नहीं रखा था ? क्या माँफ कर पाऐगा वो पिता जिसके बुढ़ापे की लाठी उसका इकलौता बेटा आक्सीजन की कमी की वजह से दुनिया छोड़ गया ?जानकारी के लिए आपको बता दू कि 50% विदेश से आई मदद अभी भी दिल्ली के एयरपोर्ट से लेकर सिस्टम के कागजो में उलझी हुई है, आखिर में मेरा सवाल है कि लगातार प्रधानमंत्री/ केंद्रीय मंत्री ट्वीट किए जा रहे है कि हम स्थिति पे नजर बनाऐ हुए अरे खाक नजर बनाऐ हुए है सिर्फ अगर ऑफिसो में मीटिंग करने से सब सही हो जाता तो फिर प्रधानमंत्री/केंद्रीय मंत्रीमंडल कि क्या जरूरत ?
भारत के पास कोरोना वायरस से निपटने के लिए ना कोई स्पेशल मैनेजमेंट ग्रुप है ना कोई राष्ट्रीय पॉलिसी जिसे की सभी लोगों तक पहुंचा जा सके, भारत और अमेरिका के सीनियर डॉक्टर ने चेताया है कि अभी तीसरी वेब आनी बाकी है अगर भारत में अभी ऐसी स्थिति है कि अंतिम संस्कार करने के जमीन कम पड़ रही है फिर तीसरी वेब में क्या हाल होगा? भारत में रोज 7500 मेट्रिक टन ऑक्सीजन उत्पादन करने की क्षमता है जो कि पर्याप्त है फिर सवाल उठता है कि ऑक्सीजन कि कमी से लोग क्यों मर रहे हैं समझिए क्यों:- अगर बोकारो स्टील प्लांट 660 मीट्रिक टन/ दिन ऑक्सीजन उत्पादन करता है दूसरी जमशेदपुर स्टील प्लांट में 2550 मीट्रिक टन/ दिन आक्सीजन की उत्पादन होती है तीसरी ऑक्सीजन कि उत्पादन भिलाई में होती है जिसकी क्षमता 265 मीट्रिक टन/ दिन है लेकिन सभी आक्सीजन को एक से दूसरे जगह भेजने में दिक्कत हो रही है, क्योंकि इसमें खास तरह की क्रायोजेनिक टैंकर कि इस्तेमाल होती है जो हमारे पास पर्याप्त मात्रा में नहीं है,अगर क्रायोजेनिक टैंकर मिल भी रही है तो ट्रांसपोर्टेशन धीमे में बहुत समस्या आ रही है सही समय पर सही जगह पे नहीं पहुंच पा रही है , अभी कुछ राज्यों में ट्रेन के माध्यम से ऑक्सीजन को ट्रांसपोर्ट किया गया लेकिन वह पर्याप्त नहीं है, सरकार को ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन को एअरलिफ्ट करने की जरूरत है
कोर्ट की भुमिक 16 हाईकोर्ट में जनहित याचिका सुनवाई सिर्फ वैक्सीन की कमी, ऑक्सीजन की कमी, रेमडेशवीयर की कमी, आरटीपीसीआर टेस्ट की कीमत तय हो, स्वास्थ्य इंसुरेंस नहीं देने पर हो रही है दिल्ली में हर दूसरे दिन हाईकोर्ट केंद्र सरकार को दिल्ली को ऑक्सीजन पूर्ति करने की ऑर्डर देती है दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा “अगर केंद्र 24 घंटे के अंदर दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन नहीं सप्लाई करती है तो आओ मानना का केस चलेगा” लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाते हुए कहा अफसरों को जेल में डालने से ऑक्सीजन नहीं आ जाएगी सभी का सहयोग जरूरी है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा ऑक्सीजन की कमी से लोगों का मरना किसी नरसंहार से कम नहीं है, आपको इन फैसलों के आधार पर कोर्ट के रुख का अनुमान हो गया होगा अंततः सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से निपटने के लिए कि राष्ट्रीय कार्य बल का गठन किया लेकिन वो भी अभी कागजों पर ही है, देश में कोरोना से निपटने के लिए कोई व्यवस्थित ढांचा नहीं है डॉक्टर अपने हिसाब से मरीजों को एंटीवायरल ड्रग और काढ़ा, विटामिन सी की गोली लेने की सलाह दे रहे हैं अधिकांश डॉक्टर एक मुश्किल परिस्थिति से गुजर रहे हैं कि अगर दो लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत है लेकिन वेंटिलेटर एक ही है तो फिर डॉक्टर कैसे निर्णय ले कि 70 वेंटिलेटर किसे दिया जाए | आज हजारों मुश्किल परिस्थितियों में भी डाक्टर अपनी भूमिका ईमानदारी से निभा रहे हैं भारत में 12.50 लाख रजिस्टर्ड डॉक्टर है जो कि हमारे देश की जरूरत के हिसाब से बहुत कम है भारत में 1457 लोगों पर एक डॉक्टर है, डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार 1000 लोगों पर 1 डॉक्टर होनी चाहिए
ऐसा नहीं है कि भारत में कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है जिसके तहत वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया या ऑक्सीजन बांटने की प्रक्रिया हो, पूरे देश में दो ऐसी सुचारू संस्था है जिसकी पहुंच हर कस्बे से लेकर हर गांव तक फैली हुई है, बैंक और सरकारी राशन दुकान क्यों ना इन दोनों को आधार बनाकर वैक्शीनेशन प्रक्रिया शुरू की जाए, करीब 88 हजार सरकारी बैंकों शखाओं को वैक्सीनेशन सेंटर में तब्दील कर दिया जाए या आप 2 लाख बंद पड़े सरकारी विद्यालयों को वैक्सीनेशन सेंटर में तब्दील कर सकते हैं, कोरोना मरीजों के रजिस्टर्ड मेंटेन से लेकर उनकी देखरेख की व्यवस्था उन 90 लाख सरकारी शिक्षकों के हाथ सौंप देनी चाहिए और प्रत्येक कोरोना केन्द्र पर 1-2 मेडिकल स्टाफ की तैनाती की जाए जो इंजेक्शन देना जानता हो इसे वैक्सीनेशन की प्रक्रिया आसान होगी..
कोरोना वायरस से निपटने के अहम कुछ सुझाव:-
1. डॉक्टर के ऊपर से दबाव कम करने के लिए भारत में जो 20 हजार मेडिकल छात्र विदेश से पढ़ कर आए हैं उन्हें एनआईटी (NEET) जैसे मेडिकल परीक्षाओं से छूट देनी चाहिए जिससे कि वो स्वास्थ्य सेवाओं में अपनी भूमिका निभा सके
2. पूरे देश में एक ऐसी पॉलिसी होनी चाहिए जिससे कि वैक्सीन, आरटीपीसीआर टेस्ट, रेमडेशवीयर, ऑक्सीजन इत्यादि की कीमत एक समान तय हो
3. पूरे देश में एक ग्रीन कॉरिडोर होनी चाहिए जिससे कि ऑक्सीजन ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और जितने भी जरूरी उपकरण है उसकी सप्लाई जल्द से जल्द हो सके (नोट:- भारत में भी जितनी भी ऑक्सीजन की जरूरत है उससे कहीं ज्यादा उपलब्ध है लेकिन लाने और रखने की समस्या है सरकार को इसमें आर्मी और एयरफोर्स की मदद से ज्यादा से ज्यादा एयरलिफ्ट करने की जरूरत है
4. पूरे देश में एक कोरोना कंट्रोल रूम होनी चाहिए जिसकी मॉनिटरिंग खुद प्रधानमंत्री ऑफिस करें ऐसे ही तर्ज पर राज्य के हर एक जिले में एक कंट्रोल रूम बनाने की जरूरत है जिससे कि सही जगह और सही समय पर जरूरत की वस्तुएं पहुंचाए जा सके
5. पूरे देश में फाइनल ईयर के मेडिकल स्टूडेंट से टेलीमेडिसिन प्रोग्राम के जरिए हल्के लक्षण वाले कोरोना मरीज का इलाज करवाया जाए
“सब शामिल है, इस गुनाह में, क़ुसूर किसी एक का नहीं है
वक्त है ,अब भी संभल जाओ,अभी सब कुछ लुटा नहीं है”
The way you are written I’m sure it clear the all the confusion of ppl well written @Manish
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धन्यवाद🙏💕🙏💕 आभार आपका पढ़ने के लिए
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