
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है विश्व में सबसे ज्यादा युवा भारत में रहते हैं जिसकी संख्या लगभग 65 करोड़ है। भारत के हर क्षेत्र में युवाओं की भागीदारी अहम है चाहे वे टेक्निकल क्षेत्र हो, आर्थिक क्षेत्र, कृषि हो या देश में हो रहे किसी आंदोलन में अपनी भागीदारी (नवनिर्माण आंदोलन 1974, निर्भया आंदोलन 2012, मंडल विरोधी आंदोलन 1990) हो। आखिर युवाओं में असंतोष क्यों उत्पन्न होते हैं, इसके सबसे बड़ी वजह हैं युवाओं को वह सम्मान नहीं मिलना जो उन्हें समाज में अच्छे दर्जे दे सके इसके दो तीन महत्वपूर्ण कारण है, पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार ना मिलना, जाति के आधार पर आरक्षण मिलने से होनहार छात्रों को दरकिनार करना, सरकार की नाकाम युवा पॉलिसी (कौशल विकास योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा बीमा योजना) कौशल विकास योजना का बजट 2016 से 2020 तक 12000 करोड़ का है, जिससे कि 40 करोड़ 20 लाख युवाओं को स्किल करना था लेकिन 45% युवाओं को ही इसका फ़ायदा मिला, प्रधानमंत्री मुद्रा बीमा योजना का बजट 5 पॉइंट 57 लाख करोड़ है, जिससे कि 1 पॉइंट 12 करोड लोगों को रोजगार मिलना था इसका मतलब प्रत्येक लोगों पे 5 लाख का खर्च लेकिन इसका फ़ायदा सिर्फ 20% लोगो को हुआ। भारत के प्रधानमंत्री हमेशा युवा की बात करते हैं। युवाओं को आगे आने की बात करते हैं लेकिन सरकार के पास एक भी अच्छी पॉलिसी युवाओं के लिए नहीं है, चाहे वो कोई भी सरकार हो या कांग्रेस की सरकार या बीजेपी की हो, युवाओं को हमेशा अपने ओर खींचे रखना चाहती है क्योंकि उन्हें पता है। अगर युवा और उनके खिलाफ हो जाए तो मुश्किलें खड़ी हो सकती है, इतिहास में इसके कई उदाहरण है। गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन(1974) में युवाओं ने जोर-शोर से भाग लिया बढ़ते हॉस्टल फीस, महंगाई और हॉस्टल के बढ़ते मेस फीस को लेकर इतनी बड़ी आंदोलन की जिससे कि गुजरात के मुख्यमंत्री चीमनभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा था 1974में बिहार में संपूर्ण क्रांति जिसके नेता जयप्रकाश नारायण थे उस आंदोलन में लाखों की संख्या में युवाओं ने भाग लिया जिसके बाद सरकार को झुकना पड़ा और देश में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी की सरकार बनी 2019 में हांगकांग में हुए अंब्रेला आंदोलन में लाखों की संख्या में युवा सड़क पर आ गए युवाओं ने उस वक्त टेक्नोलॉजी का अच्छा खासा इस्तेमाल कर आंदोलन को और मजबूत बनाया था
विगत वर्षों में भारत में ही नहीं पूरे विश्व में युवा संतोष बढ़ा है, चाहे वो जेएनयू में आंदोलन के रूप में हो या मुखर्जी नगर में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते हुए छात्रों ने किया हो या इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन (IIMC) के छात्रों का बढ़ते ट्यूशन फीस के खिलाफ प्रदर्शन हो कहीं ना कहीं यह व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह होती है। और जब ये उग्र रूप धारण कर लेता है तो उग्रवाद और आतंकवादी में परिवर्तित होने लगता है। युवा जितना ही देश की उन्नति के लिए बलवान कड़ी होते हैं। उतना ही नाजुक अगर युवा दिशाहीन हो जाए तो फिर उसे सही मार्ग पर लाने में समय लगता है, जैसा कि कश्मीर के युवा, हर रोज एक- दो कश्मीरी युवा आतंकवादी में शामिल हो रहे हैं। युवा हमेशा कुछ नया करने की सोच रखते हैं, टिके ओमन के मुताबिक युवा ना तो प्रगतिशील होते हैं और ना ही रूढ़िवादी कुछ विद्वानों का मानना है, कि भारत का युवा पीढ़ी सो रहा है क्योंकि आज लाखों की संख्या में युवाओं के पास रोजगार नहीं है ऐसा नहीं है कि वे पढ़े लिखे नहीं है। उनके पास योग्यता के हिसाब से काम नहीं मिलने पर वे ज्यादातर अवसाद का शिकार होते हैं। और गलत पदार्थों का सेवन शुरू कर देते हैं भारत में हर साल 4000 युवाओं की जान ड्रग्स, कोकीन लेने की वजह से जाती है। पिछले कुछ सालों में एक नई ट्रेन की शुरुआत हो गई है जिससे बड़ी संख्या में युवाओं को एक जाति धर्म या सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को गाली देना, ट्रोल करना और अपनी बातों को सच साबित करने के लिए झूठे तथ्यों का इस्तेमाल कर लोगों में गलत संदेश पहुंचाना है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जवाहरलाल नेहरू को अय्याश और गांधी को देशद्रोही बताना मुझे नहीं पता यह किस इतिहास की किताब में लिखी हुई है राजनीतिक पार्टियां लाखों युवाओं की आईटी सेल के जरिए गलत तथ्य पेश कर अहम मुद्दों को दरकिनार करने का काम करवाती है यहां तो युवा राजनीतिक पार्टियां के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचती नजर आ रही है। तो फिर सवाल कौन पूछेगा 2015 गुजरात में पाटीदार आंदोलन की अगुवाई करते हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी बड़े युवा चेहरा बनकर उभरे और सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को 100 सिटो का आंकड़ा भी पार नहीं करने दिया, लेकिन आज का युवा सवाल पूछने की स्थिति में नहीं है। कुछ सवाल पूछते भी हैं तो उन्हें दबा दिया जाता है, सवाल नहीं पूछने का एक कारण यह भी है कि टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग भारत में 65 करोड़ लोग फेसबुक चलाते हैं इसमें युवा की संख्या 20 करोड़ है। ओटीटी, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम इन सभी प्लेटफार्म पर सबसे ज्यादा समय बर्बाद करते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक अगर एक व्यक्ति हर दिन 5 से 6 घंटे मोबाइल फोन में बिताता है तो उसके मष्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और अवसाद का शिकार हो सकता है।
युवा असंतोष का एक महत्वपूर्ण कारण शिक्षा में समान अवसर ना मिलना भी है। 50% से ज्यादा सीटें तो आरक्षित रहती है। अनुसूचित जाति के लिए 15% अनुसूची जनजाति के लिए 6% दूसरे पिछड़ी जातियों के लिए 27 परसेंट फिजिकल हैंडीकैप के लिए तीन परसेंट सभी राज्यों का अलग-अलग आरक्षण सीट रहते हैं आंध्र प्रदेश में 60 परसेंट से ज्यादा आरक्षण सीटें हैं इसके बावजूद नौकरियों में भी 27% की आरक्षण सीटें रहती है। अब सरकार अपने फायदे के लिए प्राइवेट सेक्टर को भी नहीं छोड़ी हरियाणा, मध्यप्रदेश में 75% प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां सिर्फ उन्हीं लोगों की मिलेगी जो उस राज्य के निवासी है। यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, और 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने भी 10% आरक्षण स्वर्ण जातियों के लिए लाया क्योंकि उन्हें उनका भी वोट चाहिए, अगर यह तरीका पिछड़ी जातियों को आगे बढ़ाने वाला है तो मैं मानूँगा आज के समय में यह सबसे घटिया तरीका है, आर्थिक आधार पर आरक्षण हो लेकिन उसमें भी हर 10 साल पर देखा जाए कि जिस किसी को आरक्षण मिला उसकी क्या स्थिति है अगर स्थिति नहीं सुधरती है तो दूसरे तरीके अपनाए जाने चाहिए। जिस 45% छात्रों आरक्षण नहीं मिल पाता है वो या तो प्राइवेट कॉलेज में दाखिला लेते हैं या कुछ पढ़ाई छोड़ देते हैं मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 90% प्राइवेट कॉलेज सिर्फ एक बिजनेस मॉडल है वहां बच्चे को कंजूमर की तरह समझा जाता है, और कुछ नहीं, मैं इसका जीता जागता उदाहरण हूं। बड़ी-बड़ी इमारतों के पीछे छुपी काली दरवाजे का ज्ञात उन युवा छात्र को नहीं होता जो अभी-अभी अपने ही शहर से बाहर पैर रखे हैं। प्लेसमेंट, जॉब देने के नाम पर बच्चों का दाखिला लिया जाता है, जब उन बच्चों को प्लेसमेंट नहीं मिलती है तो उनका मनोबल बुरी तरह टूट जाता है क्योंकि उनके माता-पिता 10% – 12% लोन लेकर बच्चों को दाखिला करवाते हैं अब वही युवा छात्र समाज के डर गांव नहीं जाता है और बुरी पदार्थों का सेवन करने लगता है।
आखिर में मेरा सुझाव हमारे सभी युवा साथियों से यही हैं कि सवाल जरूर पूछिए सवाल पूछना आपका मौलिक अधिकार है। आप ये सोचकर सवाल ना पूछे कि जवाब नहीं मिलेगा आप पहले सवाल तो पूछे सबसे पहला सवाल खुद से पूछे मैं इस काम को क्यों कर रहा हूं इसका परिणाम क्या होगा, दूसरा सरकार, सत्ता और सिस्टम से जो आपको इस्तेमाल कर जरूरत खत्म होने पर ईख के छिलके कि तरह फेंक देती है।