अपनी अपनी महत्वकांक्षाओ से पड़ी राजनीति..

एक वक्त था जब हमारे प्रधानमंत्री कहा करते थे सरकार आएगी जाएगी पार्टियां बनेगी बिगड़ेगी मगर ए देश रहना चाहिए हमारा देश 1947 में आजाद हुआ लेकिन आज भी हम गुलाम ही है फर्क बस इतना है कि पहले हम अंग्रेज़ के गुलाम थे आज सत्ता के गुलाम है.. सत्ता अपने हिसाब से मुद्दा बनाती है इमरजेंसी के बाद 1977 में पहली बार गैर कांग्रेसी शासन देश में आया लेकिन सरकार अपनी कार्यकाल 5 साल पूरा नहीं कर पाई.. क्योंकि सबके अपने महत्वकांक्षाओ की पूर्ति नहीं हो पा रही थी 1999 ईस्वी में वाजपेई की सरकार की कुछ सहयोगी सांसद विपक्षी खेमे में चले गए सिर्फ एक सीट की कमी के कारण सरकार गिर गई.. 2014 में बीजेपी की सरकार को भारी बहुमत मिला बीजेपी के सत्ता में इस तरह से आना एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि यही वो पार्टी है जो 2 सीटों से 350 सीटों का आंकड़ा पार किया आपको समझना होगा कि इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ भी गैर कांग्रेसी सरकार लगातार दूसरी बार सत्ता में इतनी भारी बहुमत से वापसी की हो, 2014 के चुनाव में बीजेपी इस मुद्दे के साथ सत्ता में लौटी :- बेरोजगारी, भूखमरी, स्वास्थ्य, शिक्षा को बेहतर करेंगे .. सत्ता में लौटने का कुछ महत्वपूर्ण कारण यह भी थे जैसे की 2जी घोटाला, कोलगेट घोटाला, बोफोर्स घोटाला, आदर्श सोसायटी स्कैम जैसे कई बड़े घोटाले थे सवाल है कि क्या कांग्रेस को सत्ता से हटाने के बाद के घोटाले होने बंद हो गए , क्या आज घोटाले नहीं होते है.. आज भी होते है लेकिन आज उस फाइल को दबा दिया जाता है या अगर मुद्दा बना तो कांग्रेस के शासन काल में हुआ कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं.. सवाल पूछो तो जवाब मिलेगा ये पिछले 70 सालों का फल है,

अगर सवाल पूछो तो बीजेपी कांग्रेस के कार्यकाल का लेखा-जोखा देने लगेगी .. आपके पास इसका क्या जवाब है अगर ऐसा ही होता तो हम कांग्रेस को हटाकर बीजेपी को सरकार में क्यों लाए पैसा और ताकत के दम पर लोकतंत्र का नंगा नाच जो हो रहा है.. जिस तरह से कई राज्यों में चुने हुए सरकार को गिरा दी जाती है और लोकतंत्र का भद्दा मजाक बनाया जाता है जब एक जनता अपने विधायक को इस उम्मीद से चुनती है कि उसके 5 सालों तक उसकी हर मुश्किल स्थिति में उसका साथ देगा लेकिन वास्तव में देखने को ऐसा नहीं मिलता है चुनाव से पहले तो विधायक/सांसद जनता के बीच रहते हैं लेकिन चुनाव के बाद भेड़- बकरियों की तरह अपनी नीलामी करवाते हैं कोई मंत्री बनने के लोभ में तो कोई पैसा के लोग में हाल ही में बड़े राज्य मध्य प्रदेश और राजस्थान में कुछ ऐसा ही देखने को मिला.. जब 1999 में भाजपा की सरकार 1 वोट से गिरी तब भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला, अपनी- अपनी महत्वाकांक्षाओं..आज भी मध्य प्रदेश में चुने हुए सरकार को गिरा दी गई याहां ज्योतीयदित्या सिंधिया राज्य सभा सिट के लिए अपने गुट के विधायकों के साथ बिजेपी का दामन थाम लिया, सभी को अपनी -अपनी मह ने जकड़ लिया, किसी को मुख्यमंत्री पद तो किसी को मंत्री पद का लोग खाए जा रहा था बात अगर राजस्थान की करें तो यहां 1 महीने में राजनीतिक नाटक चला पायलट समर्थक विधायक पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे

खबर के अनुसार बीजेपी के एक मंत्री ने सभी कांग्रेस के विधायकों को 2 करोड़ रुपए का ऑफर किया था.. यह नाटक करीब डेढ़ महीने तक अशोक गहलोत पायलट समर्थक और राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट के बीच चलता रहा.. कांग्रेस के सभी पायलट समर्थक विधायकों को करीब 1 महीने तक हरियाणा के फाइव स्टार होटल में ठहराया गया.. क्योंकि वांहा राजस्थान पुलिस जांच नहीं कर सकती थी हमेशा ऐसा ही होता है चाहे मध्य प्रदेश, कर्नाटक हो गुजरात हो मणिपुर हो.. जिसका जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा यह फर्ज बनता है कि हम वोट देते समय इसका ध्यान रखें कि हम किसी भी विधायक या सांसद को यह देखकर नहीं चुने की प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री अच्छे हैं ईमानदार है यह भी देखें कि जिसको हम वोट दे रहे हैं उसपे भ्रष्टाचार या कोई रेप का तो मुकदमा नहीं चल रहा है..

धन्यवाद

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