
मैं ज्योति कुमारी बिहार के दरभंगा जिले के सिरहुल्ली गाँव की रहने वाली हूंँ, मैं पांच भाई-बहनों में दूसरे सबसे बड़ी हूं मेरे पिता पहले जमींदार के यहां खेती करते थे लेकिन उस पैसे से घर नहीं चल पाता था, साल 2018 में मेरे पिता हरियाणा के गुरुग्राम शहर आए, किस्तों पे बैट्री रिक्शा खरीदकर यहीं चलाने लगे,अच्छी खासी कमाई होने लगी, अब हमसब खुश थे घरों का खर्च अच्छे से चल जा रहा था, एक दिन गुरूग्राम से मेरे घर फोन आया कि तुम्हारे पापा एक ऑटो दुर्घटना में जख्मी हो गये है,उसके बाद मैं और मेरे जिजा अपने घर सिरहुल्ली से गुरुग्राम गये, पापा अभी पुरी तरह ठीक भी नहीं हुए थे कि तभी अचानक 24 मार्च को प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बोले पूरे देश में लॉकडाउन हो जाएगा,उसके बाद मैं और मेरे जिजा वहीं फंस गए, उसके बाद सारा धंधा चौपट हो गया पैसे आने बंद हो गए कुछ पैसे थे वो भी खत्म हो गए थे, तभी फैसला हुआ सरकार सबको घर भेजेगी, मैंने भी रजिस्ट्रेशन करवाया लेकिन मुझे कंफर्मेशन मैसेज नहीं मिला, अपने प्रदेश से बाहर रहने से कितनी तरह की परेशानियों का सामना करने को मिला,हमें कोई सरकारी सुविधाएं नहीं मिल रही थी ना राशन ना चिकित्सा, ना खाना मिल रहा था, डेरा मालिक किराये के पैसे मांग रहा था, मेरे पापा बीमार थे, चिकित्सा नहीं मिलने से उनकी तबीयत और बिगड़ रही थी, तो मैंने सोचा कि क्यों ना मैं अपनी साइकिल से गांव चली जाऊं, पापा बोले बेटी 1200 किलोमीटर है अपना गाँव नहीं जा पाओगी, लेकिन मैंने सोचा अगर यहां रहेंगे तो भूख के कारण मरेंगे, इस से अच्छा है कि अपने गांव में रहकर भूखा तो नहीं रहना पड़ेगा, मैंने सोचा अगर दिन में निकलते हैं तो ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ेगा क्योंकि दिन में धूप बहुत ज्यादा रहती है
रास्ते में मैं और मेरे पापा ने एक डब्बे में से आधा डब्बे बिस्किट खाकर पानी पी लिया और आधे डब्बे बिस्किट लम्बे सफर के लिये रख लिया, पापा की तबीयत बिगड़ रही थी फिर मैंने रास्ते में एक पेट्रोल पंप पर आराम करने का सोचा वहां पहले से कुछ और लोग ठहरे हुए थे उनको वाहां देखकर फिर थोड़ा साहस मिला, वहां पर कुछ लोगों ने हमारी मदद की खाने को दिया और कुछ फल और कुछ बिस्किट के डब्बे भी दिए, कुछ देर आराम करने के बाद फिर मैं वहां से अपने घर के लिए निकल गई, 14 मई की रात में जब मैं गोरखपुर पहुंची तो वहां कुछ लोग लंगर खिला रहे थे,मैं और मेरे पापा ने वही खाना खाया, फिर अपने घर की तरफ निकल चले 15 मई की रात करिब 9 बजे मैं अपने घर पहुंची तो मेरी बहन, छोटा भाई,मां सब देख कर खुश हो गए उनके आंखों से खुशी के आंसू गिरने लगे, फिर मैं खुद को क्वॉरेंटाइन में रखने लगी, एक दिन एक अखबार में मेरी तस्वीर छपी, उसके बाद पूरे गांव में हल्ला हो गया कि मोहन पासवान की बेटी ज्योति साइकिल से हरियाणा से अपने घर चली आई, कुछ लोगों ने प्रशंसा की तो कुछ लोगों ने 14 दिन की क्वॉरेंटाइन भेजने की धमकी दे दी, अखबार में तस्वीर आने के बाद गाँव के सरपंच ने हमारे घर 5 केजी चावल 5 केजी गेहूं और 1 केजी चना भिजवा दिया, मैं गहरी सोच में डूबी हुई थी अनाज खत्म हो जाएंगे उसके बाद क्या होगा
कुछ दिनों के बाद अचानक 23 मई को मेरे घर के कुछ दूर एक डॉक्टर चाचा है उन्होंने बताया ज्योति तुम्हारा फोटो ट्विटर पर ट्रेंड हो रहा है फिर मैंने पूछा चाचा ये ट्विटर ट्रेंड क्या होता है चाचा ने बताया मतलब तुम ट्विटर पर सबसे ज्यादा लाइक शेयर करने वाली में शामिल हो गई हो और तुम्हारे तस्वीर को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने तुम्हारी अटुट साहस की प्रशंसा की है,उन्होंने तुम्हारे धैर्य और प्रेम को भारतीय समाज का काल्पनिक प्रदर्शन बताया, कुछ घंटे बाद मेरे घर के बाहर बहुत सारी गाड़ियों की आवाज सुनाई देने लगी मैं घर में थी मुझे लगा कोई एंबुलेंस मुझे लेने आयी है लेकिन जब मैं बाहर निकली तो देखा कि दो से तीन गाड़ीयां मेरे दरवाजे पर आकर रूकी, उसमें बहुत सारे टिवी पत्रकार, न्यूज़ पेपर के पत्रकार थे, वे मुझसे ढेरों सवाल पूछने लगे आप कैसे आऐ, वहां आपको क्या कठिनाइयां हुई अब साइकिल से इतनी दूर कैसे पहुंच गए , कुछ देर बाद उसी मीडिया कर्मी में से एक ने पूछा आपको स्वास्थ्य मंत्रालय के ब्रांड एम्बेसडर बनाने पर विचार चल रहा है आप इस पर क्या कहेंगे, मैंने पूछा ये ब्रांड एम्बेसडर क्या होता है, मीडियाकर्मी बोलता है,आपको लोगों को जागरूक करना होगा स्वास्थ्य के प्रति, फिर मैं थोड़ी खुश होती हूं लेकिन मेरे मन ही मन एक सवाल चलता रहता है कि जब मैंने अपने बिमार पिता को गाँव ले जाने का साहस किया, तब किसी मिडिया या ना किसी सरकार ने सहायता नहीं कि, आज भी मेरे जैसे हजारों प्रवासी मजदूर सड़कों पे भटक नहीं रहे होते, हम सरकार से गुजारिश करते हैं कि हमारे सभी मजदूर भाई-बहनो को उनके अपने घरों तक पहुचाने की उचित व्यवस्था की जाए. “जब मैं था तो हर नहीं अब हर है तो मैं नहीं”
“मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है पंख से कुछ नहीं होता हौसलों की उड़ान होती है. किसी शायर की ऐ लाइन 15 साल की साइकिल गर्ल ज्योति पर फिट बैठती है लॉक डाउन में बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर ज्योति हरियाणा के गुड़गांव से 1200 किलोमीटर दूर अपनी मंजिल दरभंगा स्थित सिरहुल्ली गांव के लिए निकली, सपना बस एक था पिता संग सुरक्षित घर पहुंचना, हौसले से ही उसने 7 दिनों में दूरी नाप ली दुनिया ज्योति के इसी हौसले के आगे नतमस्तक है”
लेखक: मनीष कुमार