कोरोना वायरस के कारण भारत के अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव..

भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर..

कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है,इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है ,अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया है कि भारत और चीन की अर्थव्यवस्था पॉजिटिव में रहेगी। ब्रिटेन ,अमेरिका, जर्मनी,फ्रांस,रूस की अर्थव्यवस्था नेगेटिव में जा सकती है, भारत की अर्थव्यवस्था 2020-21 में 1.9% रहने का अनुमान है अथवा चीन की अर्थव्यवस्था  1.2% रहने का अनुमान है, अमेरिका  -5.9% जापान -5.2% जर्मनी  -7% स्पेन – 8%, फ्रांस -7.2%. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार 1930ई. के बाद ऐसी मंदी पहली बार देखने को मिली है, आईएमएफ ने कहा नकदी की किल्लत को दूर करने के लिए बाजार में 350 लाख करोड़ रूपया डालने की जरूरत है।
हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राहत पैकेज का ऐलान किया है,यह पैकेज 1.70 लाख करोड़ का है जो हमारे जीडीपी का 0.7 प्रतिशत है, सरकार नगद के तौर पर 8-9 करोड़ लोगों को 500 रुपये 3 महीने तक देगी,इसके लिए 5125 करोड़ के पैकेज का ऐलान किया गया है , सरकार 8-9 करोड़ लोगों को तीन किस्त में 1500 देगी यह संभव नहीं है क्योंकि 5125 करोड रुपए को 8-9 करोड़ लोगों में बांटा जाता है तो यह ₹640/व्यक्ति के खाते में जाएगा, सवाल ये उठता है कि यह कैसे संभव है ठीक उसी तरह जैसे चार आम को 8 आदमी में बांटना है लेकिन सबको एक-एक आम देना है,ऐलान के 10 दिन के बाद सरकार कहती है 2 लाख 56 हजार किसानों के खाते में पैसे चले गए हैं , अगर 5125 करोड़ रुपए को 2 लाख 56 हजार किसानों में बांटा जाए तो ₹860/ किसान पैसा होगा, पूरी झूठ की पुलिंदा खड़ी करने की कोशिश की जा रही है,सिर्फ एडवर्टाइजमेंट देकर सरकार नाम कमाने में लगी है.. ….सवाल पूछे तो कौन पूछे,जिसको सवाल पूछना है वह हिंदू मुस्लिम, निजामुद्दीन, मरकस,ताली थाली में लगी है…

भारत में 40 करोड़ ऐसे लोग है, जो भिन्न-भिन्न सेक्टर में रोज दिहारी के काम करते थे लाकडाउन होने के बाद से उनको काम नहीं मिल रहा है उनके पास खाने को कुछ नहीं है कितने जगह सरकार ने कोशिश की लेकिन जिस तरह से युद्धस्तर पर काम होना चाहिए वैसे हो नहीं रहा, सिर्फ थाली-ताली,तो कभी दिवाली मनाने में व्यस्त है, इसी कारण से लाखों संख्या में मजदूर पलायन कर रहे हैं , बहुत सारे राज्य सरकार के अनुरोध पर सरकार ने उनके लिए ट्रेन और बस की व्यवस्था की है लेकिन उस में भी राजनीति हो रही है, ट्रेन के किराये को लेकर राज्य और केंद्र आपस में झगड़ रहे हैं,जब ट्रेन टिकट बेचने की बात सामने आई तो सोनिया गांधी ने कहा टिकट का पैसा कांग्रेस पार्टी देगी, उसके बाद रेल मंत्री का बयान आता है कि 85% केंद्र और 15% राज्य सरकार दे रही है, नेशनल मिडिया अच्छे से 85%-15% के झूठ को दिखाता है, लेकिन जब कुछ न्यूज़ बेवसाइट,रेलवे का शरकुलर छापते है, बकायदा उसमें 11वीं नंबर पैरा में लिखा हुआ है टिकट बेची जा रही है, कहीं 85-15 का जिक्र नहीं है(https://www.bbc.com/hindi/india-52544974) वहीं बस में उनसे दोगुना पैसा लिये जा रहे है, बस के किराए 3 से 6 हजार/व्यक्ति है, जिनके पास खाने को पैसे नहीं हो, 6 हजार रुपये कहां से लाएंगे, इसके बावजूद भी सरकार खुद का प्रचार करने के लिए बस पर बैनर लगाना नहीं भूल रही है,इनमें 2.5लाख मजदूर बिहार के हैं,यूपी के 10 लाख मजदूर, 3 लाख मजदूर मध्य प्रदेश के है लेकिन सवाल है कि अगर लॉकडाउन के बाद फैक्ट्रीयां खुलेगी तो इतने बडे़ स्तर पर काम कैसे होगा,कहीं ना कहीं यह स्थिती आर्थिक त्रासदी की ओर संकेत दे रहे हैं,इस बिषय पर बहस करने की जरूरत है लेकिन इस पर कोई सवाल नहीं पूछेगा,

बेरोजगारी दर पिछले 43 महीने में सबसे ज्यादा है 42.6% से 23% हो गई है, 1 करोड़ 14 लाख प्राइवेट सेक्टर के कामगारों की नौकरी खतरे में दिख रही है वहीं 81% अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूर वर्ग को भी अपनी नौकरी खोने का डर सता रही है, इसके तहत छोटे छोटे व्यापारी, डिलीवरी ब्वॉय,किसान, ठेला वाला, चाय वाला, इत्यादि, फुल कारोबारी को ₹4600 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है दिसंबर – अप्रैल 2020 तक टूरिज्म सेक्टर में आठ करोड़ लोगों की नौकरी जा चुकी है, 5 लाख करोड़ का घाटा सरकार को हुआ है, ऑनलाइन ट्रैवल एजेंसी को 4 हजार 312 करोड़ का घाटा हुआ है और एफएमसीजी का विज्ञापन 30-35% घट गया है  वहीं छोटे व्यापारियों को पांच से सात लाख करोड़ का नुकसान हुआ है।

हमारे देश में फूड सिक्योरिटी कानून है इसके तहत किसी को भूखा नहीं रहने दिया जाएगा, तकलीफ तब होती है जब भूख के कारण किसी इंसान की मौत हो जाती है, हाल फिलहाल की घटना है भूख के कारण एक महिला ने अपने पांच बच्चों को गंगा में बहा दिया,कुछ दिन पहले यमुना किनारे हजारों की संख्या में मजदूर खाने की तलाश में भटक रहे थे बहुत सारे मजदूर भूख के कारण शहर से 1500-2000 किलोमीटर दूर अपने घर की तरफ पैदल ही चल पड़े रास्ते में कितने की मौत हो गई,द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक 400 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है,यह डेटा 17 मई तक का है, सवाल हैं कि सरकार मजदूरों के लिए क्या कर रही है.मजदूरों को क्यों नहीं समझा पाई, सरकार के नई गाइडलाइंस के मुताबिक ट्रेन चलाई,लेकिन उसमें भी सबको नहीं लाया जाएगा, कुछ शर्तें है.जिन्होंने ऑनलाइन फॉर्म भरा है बहुत सारे लोगों को तो फॉर्म भरना भी नहीं आता,जो रास्ते में फंसे हैं सिर्फ उनको लाया जाएगा उन सभी यात्रियों को आम दिनों के किराए से ₹50 अतिरिक्त किराया लिया जा रहा है, सरकार को यह सुनिश्चित करनी चाहिए किसी भी मजदूर को किसी भी प्रकार के दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े,जिसके पास पैसा नहीं है उसको भी घर भेजना चाहिए और हम सब कि जिम्मेदारी है कि सरकार के साथ सहयोग करे.

हम मानते हैं कि मजदूरों को लॉकडाउन का पालन करते हुए पैदल नहीं जाना चाहिए लेकिन सवाल है कि जब एक बिहार के हिसुआ के विधायक अपनी बेटी को कोटा से एसी कार में लेकर आते है तो कोई कुछ नहीं बोलता.., कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे की शादी में हजारों लोग जुटते हैं कोई उस पर कार्रवाई नहीं होती, साथ में पुलिस प्रोटेक्शन दी जाती है, क्योंकि वो आम नहीं है, सवाल इस पर पूछना चाहिए..

मीडिया सेक्टर भी हुआ आर्थिक मंदी का शिकार

कोरोना संकट के कारण मीडिया सेक्टर भी अछूता नहीं रहा, मीडिया सेक्टर को मिलने वाला विज्ञापन बंद हो गया है, इसके कारण बहुत सारे छोटे अखबार बंद होने शुरू हो गए हैं..  (DAVP) Directorate of advertisement visual publicity मीडिया संस्थानों को  सरकारी  विज्ञापनों का बकाया देने की हालत में नहीं है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का 1500-1800 करोड़ और प्रिंट मीडिया का 800 से 900 करोड़ रूपए है, इसमें इंडिया टुडे को 600-650 करोड़ का विज्ञापन मिलता है वहीं एबीपी को 250 सौ करोड़ रुपए मिलता है इंडिया टीवी को 220 करोड,जी न्यूज़ को 200 करोड़, न्यूज़ 18 को 150 करोड़, न्यूज़ नेशन को 100 करोड़ रुपए मिलता है,अभी पूरी तरह विज्ञापन बंद है मीडिया सेक्टर को नया विज्ञापन मिल नहीं रहा है इसके कारण मीडिया सेक्टर को भारी नुकसान पहुंचा है।

वित्त आयोग के 15वें अध्यक्ष एनके सिंह ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए मंदी से निपटने के लिए..

1.सरकार को मध्यवर्गीय छोटे व्यापारियों को लोन देनी होगी ।

2.सरकार को लोन भुगतान और ईएमआई की डेट बढ़ानी होगी

3.आरबीआई को नगद की कमी को दूर करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कैस सप्लाई करनी होगी

4.सरकार को 7 वें वेतन आयोग के राजस्व में कटौती करनी पड़ेगी,

5.छोटे व्यापारियों को लोन ज्यादा से ज्यादा बांटने की जरूरत पड़ेगी.

2 comments

  1. No one is carying about farmers and labous problems.this epedmic proved that indian has only two religious one is poor and other is rich

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